धर्मवीर बालवीर हकीकत राय

धर्मवीर बालवीर हकीकत राय 
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भारत वह वीरभूमि है, जहाँ हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देने वालों में छोटे बच्चे भी पीछे नहीं रहे। 1719 में स्यालकोट (वर्त्तमान पाकिस्तान) के निकट एक ग्राम में श्री भागमल खत्री के घर जन्मा हकीकतराय ऐसा ही एक धर्मवीर था। 

हकीकतराय के माता-पिता धर्मप्रेमी थे। अतः बालपन से ही उसकी रुचि अपने पवित्र धर्म के प्रति जाग्रत हो गयी। उसने छोटी अवस्था में ही अच्छी संस्कृत सीख ली। उन दिनों भारत में मुस्लिम शासन था। अतः अरबी-फारसी भाषा जानने वालों को महत्त्व मिलता था। इसी से हकीकत के पिता ने 10 वर्ष की अवस्था में फारसी पढ़ने के लिए उसे एक मदरसे में भेज दिया। बुद्धिमान हकीकत वहाँ भी सबसे आगे रहता था। इससे अन्य मुस्लिम छात्र उससे जलने लगे। वे प्रायः उसे नीचा दिखाने का प्रयास करते थे; पर हकीकत सदा अध्ययन में ही लगा रहता था। 

एक बार मौलवी को किसी काम से दूसरे गाँव जाना था। उन्होंने बच्चों को पहाड़े याद करने को कहा और स्वयं चले गये। उनके जाते ही सब छात्र खेलने लगे; पर हकीकत एक ओर बैठकर पहाड़े याद करता रहा। यह देखकर मुस्लिम छात्र उसे परेशान करने लगे। इसके बाद भी जब हकीकत विचलित नहीं हुआ, तो एक छात्र ने उसकी पुस्तक छीन ली। 

यह देखकर हकीकत बोला - तुम्हें भवानी माँ की कसम है, मेरी पुस्तक लौटा दो। इस पर वह मुस्लिम छात्र बोला - तेरी भवानी माँ की ऐसी की तैसी। हकीकत ने कहा - खबरदार, जो हमारी देवी के प्रति ऐसे शब्द बोले। यदि मैं तुम्हारे पैगम्बर की बेटी फातिमा बी के लिए ऐसा कहूँ, तो तुम्हें कैसा लगेगा ? लेकिन वह तो लड़ने पर उतारू था। अतः हकीकत उसकी छाती पर चढ़ बैठा और मुक्कों से उसके चेहरे का नक्शा बदल दिया। उसका रौद्र रूप देखकर बाकी छात्र डर कर चुपचाप बैठ गये। 

ये विवाद कक्षा के मौलाना के पास पहुंचा। मौलाना ने अपनी इस्लामी कौम के छात्रों का पक्ष लिया, और हकीकत को मुस्लिम छात्रों से माफी मांगने के लिए कहा। बालक हकीकत ने यह कहकर माफी मांगने से इंकार कर दिया कि पहले मुस्लिम छात्र ने हमारी मां दुर्गा भवानी को गालियां दी हैं, इसलिए इसलिए मैं इनसे माफी नहीं मांग सकता। मुस्लिम अध्यापक भी जातिवाद के कारण बालक हकीकत से द्वेष रखते थे, इसलिए उन्होंने इस विवाद को सुलझाना नहीं चाहा और ये मामला मुस्लिम अदालत में लाहौर शहर काजी के पास भेज दिया ।

काजी ने मामले को एकतरफा सुनकर निर्दोष हकीकत को लाहौर अदालत की हवालात में बंद करा दिया। मुस्लिम हकूमत थी, हकीकत ने अपना पक्ष रखा तो उस निर्दोष बालक की एक ना सुनी गई। राज भी मुस्लिम और हुकम भी मुस्लिमों का। अगले दिन अदालत लगी वीर बालक हकीकत को पेश किया गया, जब हकीकत से उनका पक्ष सुना गया तो उन्होंने सारा वाकया दोहराया लेकिन यहां भी क़ौम का पक्षपात हुआ। हकीकत से अपने पक्ष में गवाह पेश करने के लिए कहा गया लेकिन एक निर्दोष हिन्दू बच्चे से ईर्ष्या और द्वेष के कारण कोई उसकी तरफ से गवाही देने के लिए तैयार नहीं था। 

इस मौके पर हकीकत के माता-पिता भी मौजूद थे उन्होंने हकीकत के लिए झोली फैला कर माफी की मन्नतें की, लेकिन कोई प्रभाव नहीं हुआ सब व्यर्थ था। अदालत के काजी ने हुक्म फरमाया कि या तो हकीकत को इस्लाम मजहब अपनाना होगा तो जान बक्शीश की जाती है, अन्यथा फातिमा को गाली देने के जुर्म में जल्लादों से कत्ल करवाया जाएगा। 

ऐसा आदेश सुनकर हकीकत के माता-पिता का कलेजा कांप गया और हकीकत से कहने लगे कि बेटा तू मुस्लिम बन जा, लेकिन धर्म पर अडिग वीर हकीकत राय ने साफ इनकार कर दिया और कहा कि यदि ईश्वर को मुझे मुस्लिम बनाना था तो हिन्दू परिवार में क्यों जन्म दिया। मैंने हिन्दू कुल में जन्म लिया है और मैं हिन्दू ही रहूंगा और हिन्दू ही मरूंगा। भरी अदालत में 14 वर्ष के बालक के ऐसे शब्द सुनकर मुस्लिमों में दहशत और क्रोध के मिश्रित भाव थे।

मुस्लिमों की तरफ से बालक हकीकत को जान बख्शने के बदले में कई प्रकार के प्रलोभन दिए गए, लाहौर अदालत के जिस काजी ने हकीकत को तलवार से क़त्ल करने का हुक्म सुनाया था, उसने अपनी लड़की को हकीकत के पास हवालात में भेजा, काजी की लड़की ने मुस्लिम मजहब अपनाने के बदले में सजा माफ करवाने और अपनी शादी करने का वचन दिया, लेकिन हकीकत ने यह कहकर मना कर दिया कि मेरी शादी तो लक्ष्मी के साथ हो चुकी है, मैं किसी अत्याचारी मलेच्छ क़ौम में दूसरी शादी भला क्यों करूं।

काजी की लड़की वापस चली गई और अपने अब्बा से जाकर कहा कि वह तो अपने धर्म का दीवाना है बहुत हठीला और जिद्दी व अडिग है, जो कभी नहीं डगमगा सकता । अब तो बसंत पंचमी का दिन नजदीक आ चुका था, जब हकीकत को कत्ल किया जाना था। आखरी बार हकीकत की मां ने आकर भी हकीकत को इस्लाम धर्म अपना लेने के लिए खूब समझाया, लेकिन हकीकत नहीं माना। हकीकत के पिता और पत्नी भी उसे धर्म बदलने को कहने लगे, जिससे वह उनकी आँखों के सामने तो रहे; पर हकीकत ने स्पष्ट कह दिया कि व्यक्ति का शरीर मरता है, आत्मा नहीं। अतः मृत्यु के भय से मैं अपने पवित्र हिन्दू धर्म का त्याग नहीं करूँगा। 

बता दें कि हकीकत की शादी बटाला के साहूकार की लड़की लक्ष्मी से इस किस्से से 10 दिन पहले ही हुई थी। मां ने कहा बेटा तेरी अभी शादी हुई है कोई संतान भी नहीं है हकीकत ने कहा, मां मेरे जैसे और कितने ही हकीकत पैदा होंगे, लेकिन मैं मुस्लिम मजहब अपनाकर अपनी संस्कृति पर धब्बा नहीं लगा सकता और मां को वापस भेज दिया।

आखिर बसंत पंचमी का दिन आ गया। सुबह के 4:00 बजे थे। प्रजा में रोष था कि आज हकीकत को कत्ल कर दिया जाएगा। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था। लोगों की आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी। लेकिन मुस्लिम साम्राज्य था, कोई कुछ नहीं कर सकता था, लेकिन जो जहां था वह बेहद गमगीन तोर पर उदास था। सुबह की अजान के शुरू होते ही काजियों की उपस्थिति में जल्लाद ने अपनी तलवार से लाहौर की जेल में 14 वर्ष के निर्दोष बालक वीर हकीकत राय का सर एक ही बार में धड़ से अलग कर दिया। चारों तरफ करुण क्रंदन और चीत्कार होने लगा। "वीर हकीकत राय अमर रहे" के उद्घोष से आसमान गूंजने लगा।

धर्म पर अडिग रहने वाले अनुपम, अद्वितीय बलिदानी वीर हकीकत की कथा इस्लाम की क्रूरता, न्याय के नाम पर अन्याय की पराकाष्ठा और इस्लाम के अत्याचार, अनाचार, अन्याय और अन्धत्व की यह क्रूर कथा है!

शत्–शत् नमन् करूं मैं आपको......💐💐
🙏🙏
#VijetaMalikBJP

#HamaraAppNaMoApp


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