शहीद चंद्रशेखर आज़ाद जी


अमर बलिदानी चंद्रशेखर आजाद
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"27 फरवरी/बलिदान-दिवस" 
 
*क्रांतिवीर चंद्रशेखर आजाद, जो सदा आजाद रहे*

*भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानियों में क्रांतिवीर  चन्द्रशेखर आजाद का नाम सदा अग्रणी रहेगा। उनका जन्म 23 जुलाई, 1906 को ग्राम माबरा (झाबुआ, मध्य प्रदेश) में हुआ था। उनके पूर्वज गाँव बदरका (जिला उन्नाव, उत्तर प्रदेश) के निवासी थे; पर अकाल के कारण इनके पिता श्री सीताराम तिवारी माबरा में आकर बस गये थे।*

बचपन से ही बालक चन्द्रशेखर का मन अंग्रेजों के अत्याचार देखकर सुलगता रहता था। किशोरावस्था में वे भागकर अपनी बुआ के पास बनारस आ गये और संस्कृत विद्यापीठ में पढ़ने लगे। बनारस में ही वे पहली बार विदेशी सामान बेचने वाली एक दुकान के सामने धरना देते हुए पकड़े गये।

*थाने में हुई पूछताछ में उन्होंने अपना नाम आजाद, पिता का नाम स्वतन्त्रता और घर का पता जेलखाना बताया। इस पर बौखलाकर थानेदार ने इन्हें 15 बैंतों की सजा दी। हर बैंत पर ये ‘भारत माता की जय’ बोलते थे। तब से ही इनका नाम 'आजाद' प्रचलित हो गया। आगे चलकर आजाद ने सशस्त्र क्रान्ति के माध्यम से देश को आजाद कराने वाले युवकों का एक दल बना लिया।*

क्रांतिवीर भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरू, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक, मन्मथनाथ गुप्त, शचीन्द्रनाथ सान्याल, जयदेव आदि उनके विशेष सहयोगी थे। चंद्रशेखर आजाद तथा उनके सहयोगियों ने 09 अगस्त, 1925 को लखनऊ से सहारनपुर जाने वाली रेल को काकोरी स्टेशन के पास रोककर सरकारी खजाना लूट लिया।

*यह लूट अंग्रेज शासन को खुली चुनौती थी, अतः सरकार ने क्रान्तिकारियों को पकड़ने में पूरी ताकत झोंक दी। पर आजाद को पकड़ना इतना आसान नहीं था। वे वेष बदलकर क्रान्तिकारियों के संगठन में लगे रहे। ग्वालियर में रहकर इन्होंने गाड़ी चलाना और उसकी मरम्मत करना भी सीखा।*

17 दिसम्बर, 1928 को इनकी प्रेरणा से ही वीर भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरू आदि ने लाहौर में पुलिस अधीक्षक कार्यालय के ठीक सामने सांडर्स को यमलोक पहुँचा दिया। अब तो पुलिस बौखला गयी; पर यह क्रान्तिवीर अपने काम में लगे रहे। कुछ समय बाद क्रान्तिकारियों ने लाहौर विधानभवन में बम फेंका।

*यद्यपि इस विस्फोट का उद्देश्य किसी को नुकसान पहुँचाना नहीं था। उनका उद्देश्य आवाज वाला बम कुछ पर्चो के साथ फैंक देश हित के लिए कुछ भी ना करने, ना कहने और ना ही सुनने वाले बहरे हिन्दुस्तानियों को जगाना था। बम फेंक कर वीर भगतसिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने आत्मसमर्पण कर दिया। उनके वीरतापूर्ण वक्तव्यों सेे जनता में क्रान्तिकारियों के प्रति फैलाये जा रहे भ्रम दूर हुए। दूसरी ओर अनेक क्रान्तिकारी पकड़े भी गये।*

उनमें से कुछ पुलिस के अत्याचार ना सह पाये और मुखबिरी कर बैठे। इससे क्रान्तिकारी आन्दोलन कमजोर पड़ गया। वह 27 फरवरी, 1931 का दिन था। चंद्रशेखर आजाद भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव की जल्द रिहाई और उन्हें फांसी पर रोक लगाने के लिए अंग्रेजी सरकार से सिफारिश करने के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू के पास ही थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसके लिए मना कर दिया और आजाद गुस्से में आगे की योजना बनाने के लिए अल्फ्रेड पार्क में जाकर बैठ गए। पुलिस को किसी मुखबिर से समाचार मिला कि आज प्रयाग के अल्फ्रेड पार्क में चन्द्रशेखर आजाद किसी से मिलने वाले हैं।

*कहा जाता है कि यह सूचना नेहरू जी द्वारा ही पहुँचाई गई थी, इसके बाद ही पुलिस नेे समय गँवाये बिना पार्क को घेर लिया। आजाद एक पेड़ के नीचे बैठकर अपने साथी की प्रतीक्षा कर रहे थे। जैसे ही उनकी निगाह पुलिस पर पड़ी, वे पिस्तौल निकालकर पेड़ के पीछे छिप गये।*

कुछ ही देर में दोनों ओर से गोली चलनेे लगी। इधर चन्द्रशेखर आजाद अकेले थे और उधर पुलिस के कई जवान। जब आजाद की पिस्तौल में एक गोली रह गयी, तो उन्होंने देश की मिट्टी अपने माथे से लगायी और उस अन्तिम गोली को अपनी कनपटी में मार लिया। उनका संकल्प था कि वे आजाद ही जन्मे हैं और मरते दम तक आजाद ही रहेंगे। उन्होंने इस प्रकार अपना संकल्प निभाया और जीते जी पुलिस के हाथ नहीं आये। 

और इस तरह इस अमर बलिदानी चंद्रशेखर आजाद ने मातृभूमि 🇮🇳🇮🇳 के लिए अपना बलिदान दे दिया।

शत–शत नमन करू मैं आपको.....💐💐💐💐
🙏🙏
#VijetaMalikBJP

#HamaraAppNaMoApp


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