भाई मरदाना जी "गुरु नानक देव जी की परछाई"

भाई मरदाना जी  "गुरु नानक देव जी की परछाई"
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*नानक नाम जहाज है, चढ़ै सो उतरे पार जो श्रद्धा कर सेंवदे, गुर पार उतारणहार।।*.                              

"अद्भुत समाज सुधारक, सिख पंथ के संस्थापक, भारत की समृद्ध संत परंपरा के अद्वितीय प्रतीक, अपनी वाणी के द्वारा संपूर्ण मानवता को आत्मीयता, सेवा और सद्भाव का संदेश देकर एवं अपनी यात्राओं के द्वारा पूरे राष्ट्र को एकता के सूत्र में पिरोने वाले *पूज्य श्री गुरुनानक देव जी* के 551वे प्रकाशोत्सव पर उनको शत-शत नमन 💐🙏💐।” 

*आपकी शिक्षाएं हमें प्राणी मात्र के प्रति प्रेम, सेवा भाव एवं सद्भावना रखने हेतु प्रेरित करती हैं।* 

आइये आज जानते हैं गुरु नानक देव जी की जयंती के शुभ अवसर पर,  गुरु नानक देव जी की परछाई "भाई मरदाना जी"  के बारे में ..... 

भाई मरदाना जी ना केवल एक रबाबी थे, बल्कि वह गुरु नानक जी के सच्चे मित्र भी थे, उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी गुरु नानक जी को अर्पण कर दी।  

सिक्ख इतिहास में जहां गुरु नानक साहिब जी का नाम बड़ी ही श्रद्वा तथा सम्मान से लिया जाता है वहीं भाई मरदाना जी का नाम भी बहुत ही अदब तथा प्यार से लिया जाता है। 

मनुष्यता के हित के लिए गुरू नानक साहिब जी ने कई-कई मील लम्बी यात्राएं की। इस सफर में गुरू जी का डट कर साथ देने वाले (अभिन्न साथी) भाई मरदाना जी का नाम सब से पहले लिया जाता है। 

भाई मरदाना जी का पहला नाम भाई दाना था। आप का जन्म 6 फरवरी साल 1459 (संवत् 1516) को राय-भोंई की तलवंडी (ननकाना साहिब) पिता मीर बादरे एवं माता लख्खो के घर हुआ।भाई साहब अपने माता-पिता की सातवीं संतान थे। इस परिवार में पहले छह बच्चे होकर गुज़र गये थे,सो सातवीं संतान को बचाने के मकसद से इस बच्चे का नाम रखा गया ‘मर जाणा‘‘। 

गांव के सभी लोग भाई साहब को इसी नाम से पुकारते परंतु गुरू नानक साहिब जी ने आपको नया नाम दिया-‘मरदाना‘ अर्थात् ‘मरदा ना। आयु के पक्ष से भाई मरदाना जी गुरू नानक पातशाह से लगभग दस साल बड़े थे। 

भाई मरदाना जी मित्रता गुरू नानक साहिब जी के साथ छोटी उम्र में ही पड़ गई थी जो गुरू साहिब की और से मिले प्यार के कारण अंतिम श्वास तक निभी। रबाब बजाने का हुनर विरासत में मिलने के कारण भाई साहब एक उच्चकोटि के संगीतकार थे। गुरू जी उनके इस हुनर पर मोहित थे।सुख-दुख के सांझीदार होने के साथ-साथ वह श्री गुरू नानक साहिब जी की ओर से नियुक्त प्रचारक भी थे,जिन्हें गुरू जी ओर से विशेष अधिकार प्राप्त थे। इन अधिकारों का प्रयोग वह गुरू नानक बाणी के प्रचार तथा प्रसार हित करते थे। 

श्री गुरू नानाक साहिब जी के (बचपन के) सच्चे साथी भाई मरदाना जी सारी उदासीयों में गुरू जी के अंग-संग रहे हैं। उन्होंने गुरू साहिब के संग देश-विदेश का लगभग 40000 किलोमीटर का सफर पेदल तय किया। भाई मरदाना जी ने गुरू नानक साहिब जी की रचनात्मक प्रवृति को प्रफुल्लित करने में भी पूरा सहयोग दिया। जब भी गुरू साहिब के हृदय में बाणी उदित होती वे भाई मरदाना से कहते,”मरदानियां रबाब उठा बाणी आई है।” गुरू नानक जी का हुकुम पा कर भाई मरदाना जी की रबाब झंकृत होती और गुरू जी के मुख से बाणी की वर्षा होती। जहां भाई साहब को गुरू साहिब की बाणी को 19 रागों में बांध कर गाने का शर्फ हासल है वहीं उन्हें गुरू नानक दरबार के प्रथम कीर्तनयें होने का मान भी प्राप्त है। 

जलते जगत को ठंडा करते हुए जब श्री गुरू नानक साहिब जी अपनी चौथी उदासी के समय अफगानिस्तान की एक नदी “कुरम“ के किनारे पर पहुंचे तो भाई मरदाना जी को अकाल पुरख का बुलावा आ गया। अपने अंतिम समय पर भाई साहब ने श्री गुरू नानक देव जी से अलविदा लेनी चाही। गुरू साहिब ने ईश्वर के आदेश को मानते हुए भाई साहब को गले से लगा लिया ओर बचन किया कि,“मरदानियां यदि तुम्हारा मन हो तो तुम्हारी देह को ब्रह्मण की तरह पानी में फैंक दूं, खतरी की तरह जला दूं ,वैश्य की तरह हवा में उड़ा दूं, या फिर मुसलमानों की भान्ति धरती के सुपुर्द कर दुं।” गुरू नानक साहिब जी के वचन का जवाब देते हुए भाई मरदाना जी ने कहा,“वाह बाबा वाह! अभी भी शरीरों के चक्करों में डाल रहे हो।“ 

गुरू जी फिर बोले,“भाई मरदाना यदि तुम कहे तो तुम्हारी समाधि बना दें।“ उस समय भाई साहब ने जो उतर दिया वह बहुत ही भावपूर्ण था-“ बाबा ! बड़ी मुश्किल से तो शरीर रूपी समाधि में से बाहर आने लगा हूं, अब फिर पत्थरों की समाधि में डालना चाहते हो।“ भाई मरदाना जी की बातें सुनकर गुरू जी बहुत खुश हुए और कहा भाई साहिब जी आपने प्रभू को पा लिया आप सच में ब्रहम ज्ञानी है, गुरू नानक साहिब जी ने भाई साहिब को गले लगाया और कहा जैसी आपकी ईशा होगी वैसा ही आपका अंतिम संसकार होगा, और आप हमेशा हमारा दिल मे रहेंगे । 

श्री गुरू नानक साहिब जी से बातचीत करते हुए आखिर  सन् 1534 को भाई मरदाना जी इस भौतिक संसार से विदा हो गए। भाई साहब का अंतिम संस्कार गुरू जी ने अपने हाथों से सम्पन्न किया था। 

शत–शत नमन करूँ मैं आपको भाई मरदाना जी और पूज्य गुरुदेव नानक जी ......💐💐💐💐
🙏🙏
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