वीर सावरकर जी
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सावरकर माने तेज,
सावरकर माने त्याग,
सावरकर माने तप,
सावरकर माने तत्व,
सावरकर माने तर्क,
सावरकर माने तारुण्य,
सावरकर माने तीर,
सावरकर माने तलवार।
......... अटल बिहारी वाजपेयी
#VeerSavarkar जी
भारत के स्वंत्रता सेनानियों में विनायक दामोदर सावरकर, जिन्हें वीर सावरकर / Veer Savarkar के नाम से हम सब भलीभांति परिचित है। वीर सावरकर एक ऐसे सिद्धहस्त लेखक थे जब इन्होने पहली बार लेखनी चलायी तो सबसे पहले उन्होंने अंग्रेजो के दमनकारी सन 1857 के स्वंत्रता संग्राम का इतना सटीक वर्णन किया की इनके पहले ही प्रकाशन से अंगेजी सत्ता इतनी डर गयी कि यहाँ तक की अंगेजो को इनके प्रकाशन पर रोक लगाना पड़ा था। वीर सावरकर एक ऐसे देशभक्त थे जिन्होंने 1901 में इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया पर जब नाशिक में शोक सभा का आयोजन किया गया तो सबसे पहले इसका खुलकर विरोध वीर सावरकर ने ही किया था और विरोध करते हुए सावरकर ने कहा था की क्या कोई अंग्रेज हमारे देश के महापुरुषों की मृत्यु पर शोक सभा करते है। जब अंग्रेज हमारे देश में होकर भी हमारे बारे में नही सोचते, तो भला हमे दुश्मन की रानी की शोक सभा क्यों करनी चाहिए, जिसे देखकर अंग्रेजो के हाथ पाँव फुल गये।
तो आईये जानते है वीर सावरकर के जीवन के बारे में .........
वीर सावरकर की जीवनी :
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वीर सावरकर का जन्म 28 मई, 1883 को भारत के महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिले के भांगुर गाव में हुआ था। इनके पिता का नाम दामोदर पन्त सावरकर और माता का नाम राधाबाई था। जब वीर सावरकर महज 9 साल के ही थे, तो इनकी माता का हैजे की बीमारी से देहांत हो गया और फिर माता की मृत्यु के पश्चात, 7 साल बाद प्लेग जैसी भयंकर बीमारी के फैलने के कारण इनके पिता भी इस दुनिया को छोड़कर चले गये। फिर इनका लालन पालन इनके बड़े भाई गणेश नारायण दामोदर सावरकर तथा बहन नैनाबाई की देख-रेख में हुआ।
बचपन से वीर सावरकर पढने लिखने में बहुत तेज थे, जिसके चलते आर्थिक तंगी के बावजूद भी इनके भाई ने इन्हें पढने के लिए स्कूल भेजा। फिर इसके पश्चात सन1901 में वीर सावरकर ने शिवाजी हाई स्कूल, नासिक से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण किया। बचपन से ही लिखने का शौक रखने वाले वीर सावरकर ने अपनी पढाई के दौरान ही कविताये भी लिखना शुरू कर दिया था।
इसके पश्चात इनका विवाह सन 1901 में ही यमुनाबाई के साथ हुआ। जिसके बाद इनके आगे की पढाई के खर्च की जिम्मेदारी इनके ससुर ने उठाई, जिसके बाद इन्होने पुणे के फग्रयुसन कालेज से बी०ए० की पढाई पूरी की और इसी पढाई के दौरान वीर सावरकर को आजादी के लिए उस समय के युवा राजनेता बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चन्द्र पाल, लाला लाजपत राय जैसे नेताओ से प्रेरणा मिली, जो उस समय तत्कालीन बंगाल विभाजन के विरोध में ये लोग देश में स्वदेशी अभियान चला रहे थे, जिनसे प्रभावित होकर वीर सावरकर ने पहली बार 1905 में दशहरा के दिन विदेशी कपड़ो की होली चलायी, जो की एक तरह से पूरे देश में अंग्रेजी वस्तुओ के विरोध की आग पूरे देश में फ़ैल गयी। जिसके बाद वीर सावरकर ने अपने कॉलेज मित्रो के साथ अभिनव भारत नामक संगठन बनाया, जिसका उद्देश्य अंग्रेजो से मुक्त नवभारत का निर्माण करना था। आजादी की लड़ाई के दौरान वीर सावरकर सक्रीय रूप से अपने संघटन द्वारा आजादी की लड़ाई में भाग लेने लगे थे और जब भी वीर सावरकर लोगो को संबोधित करते हुए भाषण देते थे, तो उनके भाषण में आजादी पाने के लिए उतावलापन और हिंदुत्व की स्पष्ट छाप दिखाई पड़ती थी, जिसके कारण इनके भाषणों पर सीधा रोक तक लगा दिया गया था।
वीर सावरकर के ऊपर रुसी क्रांति का काफी अधिक प्रभाव पड़ा, जिसके चलते उन्होंने लन्दन प्रवास के दौरान इंडिया हाउस / India House में पहली बार 10मई, 1907 को पहली बार भारत की प्रथम स्वंत्रता संग्राम का जश्न मनाया गया और इसी दौरान वीर सावरकर की मुलाकात पहली बार लाला हरदयाल जी से हुई, जो की उस समय इंडिया हाउस का देखरेख किया करते थे। फिर वीर सावरकर को अंग्रेजो ने अंग्रेजो के खिलाफ कार्यवाही करने पर 13 मई 1910 को पहली बार इन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गयी। फिर इसके पश्चात 31 जनवरी 1911 को इन्हें दोबारा आजीवन कारावास की सजा दी गयी। अपने एक ही जीवनकाल में दो-दो बार आजीवन कारावास पाने पहले वो पहले व्यक्ति थे।
स्वंत्रता प्राप्ति के पश्चात वीर सावरकर बहुत ही खुश तो हुए ही लेकिन उन्हें इस बात का बहुत दुःख भी हुआ की उनके देश के दो टुकड़े हो गये उनका मानना था की किसी भी देश की सीमाए किसी के लिख देने से निर्धारित नही होती है बल्कि देशो की सीमाए देश के नवयुवको के आपसी प्रेम और भाईचारे से निर्धारित होती है।
फिर गांधीजी की हत्या के उपरांत 5 फरवरी 1948 को इन्हें प्रिवेंटिव डिटेंन्षन एक्ट धारा के तहत इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन बाद में कोर्ट की कारवाई के बाद इन्हें निर्दोष पाया गया उन्हें जेल से रिहा कर दिया।
अक्सर लोगो द्वारा उन पर आरोप लगाया जाता रहा कि वीर सावरकर हमेशा भड़काऊ भाषण देते है, लेकिन वीर सावरकर स्वराज की कामना के साथ अंतिम समय तक लोगो को हिंदुत्व और आपसी एकता के भाईचारे में जोड़ना कभी नही छोड़े । फिर 82 वर्ष की उम्र में 26 फरवरी 1966 को वीर सावरकर हमेशा के लिए इस दुनिया से विदा हो गये।
वीर सावरकर से जुडी कुछ अनसुनी बाते :
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वीर सावरकर को अपने जीवन के तमाम अवसर जेल की काल कोठरियों में बिताना पड़ा लेकिन अपने अदम्य साहस के बलबूते वीर सावरकर हमेसा इन सजाओ से परे होकर विजयी निकलते, वीर सावरकर के जीवन से कुछ ऐसी ही तमाम अनसुनी बाते है जिन्हें हम आईये आज जानते है :-
1 – वीर सावरकर विश्व के पहले ऐसे क्रन्तिकारी देशभक्त थे जिनसे अंग्रेजी शासन इस तरह हिल गयी थी की इन्हें एक बार नही दो दो बार आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी फिर भी सजा के डर से परे वीर सावरकर तो हसते हुए कहते थे, "चलो अच्छा है की हिंदुत्व के पुनर्जन्म से इतना डर गयी है की मुझे दो दो बार आजीवन कारावास की सजा मिली है।"
2 – वीर सावरकर अंग्रेजी शासन के दौरान जब उन्हें काला पानी की सजा मिली थी लगभग जेल में 10 साल गुजारते हुए भी प्रतिदिन खुद कोल्हू चलाते थे और अपनी लेखनी को धर देते हुए जेल की दीवारों पर 6000 से अधिक कविताये लिखी थी जिन्हें उन्हें मुहंजबानी भी याद थी।
3 – वीर सावरकर एक ऐसे राष्ट्रभक्त नेता थे जिनको अंग्रेजो ने लगभग 30 साल तक जेल की कोठरियों में कैद कर रखा था यहाँ तक आजादी के पश्चात भी नेहरु सरकार ने भी गांधीजी की हत्या का आरोपी मानकर इन्हें लाल किले में कैद कर दिया गया था लेकिन आरोप न सिद्ध न होने की दशा में इन्हें ससम्मान रिहा कर दिया गया था।
4 – वीर सावरकर ने पहली बार अंग्रेजी वस्तुओ का बहिष्कार करते हुए विदेशी वस्त्रो की होली जलाई थी जिसके चलते इनके ऊपर केस चलाया गया और फिर इन्हें कालेज से निकाल भी दिया गया था जिसके विरोध में अनेक हड़ताले भी हुई जो अंग्रेजी शासन के लिए नासूर साबित हुआ बाद में गांधीजी भी इनसे प्रभावित होकर 16 वर्षो के पश्चात 1921 में विदेशी वस्त्रो का बहिस्कार किया।
5 – वीर सावरकर ने ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ नामक ग्रन्थ लिखकर अंग्रेजी शासन को हिला दिया था अंग्रेज शासन वीर सावरकर से इतने भयभीत हो गये थे की आखिर वीर सावरकर को इतनी सटीक जानकारी कहा से मिली थी जिसके चलते ब्रिटिश शासन ने इनके पुस्तक को प्रकाशित होने से पहले ही बैन कर दिया था लेकिन भारत में भगत सिंह के अथक प्रयासों से इसे छापा गया था जो हर देशभक्त के घर में यह पुस्तक अंग्रेजों के घरों में छापे के दौरान जरुर मिलता था।
6 – वीर सावरकर बंदी बनाये जाने के दौरान जब अंग्रेज इन्हें इंग्लैंड से भारत ला रहे थे तो 8 जुलाई 1910 को ये चुपके से समुन्द्र में कूद गये और तैरते हुए वे फ़्रांस पहुच गये थे।
7 – वीर सावरकर से अक्सर कांग्रेस शासन इनकी प्रखर और हिंदुत्व की राष्ट्रवादी सोच से हमेशा ही खफा रहती थी, जिसके चलते इन्हें आजादी के बाद भी इन्हें जेल में कई सालो तक गुजरना पड़ा था । यहाँ तक की इनकी मृत्यु के उपरांत भी जब संसद में शोक प्रस्ताव रखा गया था, तो कई कांग्रेस सांसदों ने इनके विरोध में आते हुए साफ़ मना कर दिया था कि जब वीर सावरकर संसद के सदस्य थे ही नही तो उनके लिए संसद में क्यों शोक प्रस्ताव रखा जाय।
8 – वीर सावरकर की मृत्यु के पश्चात पहली बार 2003 में संसद में इनकी मूर्ति का अनावरण हुआ जिसके विरोध में विपक्षी पार्टियों ने खूब जमकर हंगामा भी किया था यहाँ तक की इनकी मूर्ति को लगने से रोकने के लिए राष्ट्रपति तक को ज्ञापन भेजा गया था। लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल कलाम इस सुझाव को नकारते हुए खुद अपने कर कमलो से वीर सावरकर के मूर्ति का अनवारण किया था।
भले ही आज वीर सावरकर लोगो के बीच में नही है, लेकिन उनकी प्रखर राष्ट्रवादी सोच हमेशा लोगो के दिलो में जिन्दा रहेगी। ऐसे भारत के वीर सपूत वीर सावरकर पर हम सभी भारतीयों को हमेशा नाज रहेगा। हमारे देश के इन्ही अमर बलिदानियों के चलते ही आज हमारा देश यहाँ तक पंहुचा है। इसी कारण हर साल 28 मई को पूरे देश में वीर सावरकर के सम्मान में वीर सावरकर जयंती / Veer Savarkar Jayanti मनाई जाती है।
ऐसे वीर सपूत, भारत माँ के लाल वीर सावरकर को हम सभी देशवासियों की तरफ से शत-शत नमन। आप हमारे दिलों में हमेशा-हमेशा रहेंगे...... 💐💐💐💐
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#VijetaMalikBJP
#HamaraAppNaMoApp