पंडित कृपा राम दत्त जी
पंडित कृपा राम दत्त
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तुम भूल न जाओ उनको,
इसलिए लिखी यह कहानी,
जो शहीद हुए हैं उनकी,
ज़रा याद करो कुर्बानी...
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✍️सिख इतिहास में अगर सबसे ताकतवर सेनापतियों की बात होती है, तो उसमे पंडित कृपा राम दत्त का नाम अव्वल है।
✍️ पंडित कृपा राम दत्त ने गुरु गोबिंद सिंह जी को शस्त्र और शास्त्र की विद्या दी थी।
✍️ खालसा सेना को एकत्रित करके मुख्य पटल में लाने का काम पंडित कृपा दत्त का था।
✍️ गुरु तेगबहादुर जब पंडित सतीदास, पंडीत मतिदास और पंडित दयाल दास के साथ उस क्रूर, ज़ालिम, निर्देयी मुगल बादशाह औरंगजेब द्वारा शहीदी दिए थे, उस वक्त खालसा सेना में पंडित कृपा दत्त की भागीदारी ज्यादा हो गई थी
✍️ पंडित कृपा दत्त ने चमकौर के युद्ध मे अपने जीवन का बलिदान दिया था।
गुरु गोविंद सिंह, जो कि सिखों के दसवें गुरु थे, उन्हें वर्ष 1704 में 20 दिसंबर को आनंदपुर साहिब किले को अचानक से बेहद कडक़ड़ाती ठंड में छोडऩा पड़ा था, क्योंकि मुगल सेना ने इस पर आक्रमण कर दिया था। गुरु गोविंद सिंह चाहते थे कि वे किले में ही रुक कर आक्रमणकारियों के छक्के छुड़ा दें, लेकिन उनके दल में पंडित कृपा दत्त आदि जो लोग शामिल थे, उन्होंने खतरे को भांप लिया था। ऐसे में उन्होंने गुरु गोविंद सिंह से आग्रह किया कि इस वक्त यहां से निकल जाना ही उचित होगा। गुरु गोविंद सिंह जी ने आखिरकार उनकी बात मान ली और आनंदपुर किले को छोडक़र वे अपने परिवार के साथ वहां से निकल गए।
बिछड़ गया गुरु गोविंद सिंह जी का परिवार :
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सरसा नदी को जब वे पार कर रहे थे, तो इस दौरान नदी में पानी का बहाव बहुत तेज होने की वजह से गुरु गोविंद सिंह के परिवार के सदस्य एक-दूसरे से बिछड़ गए थे। गुरु गोविंद सिंह के दो बड़े बेटे अजीत सिंह और जुझार सिंह उनके साथ ही रह गए और वे उनके साथ चमकौर पहुंच गए थे। वहीं, दूसरी ओर गुरु गोविंद सिंह की माता गुजरी देवी और उनके दो बेटे जोरावर सिंह और फतेह सिंह अलग हो गए थे। गुरु गोविंद सिंह का सेवक गंगू इन्हीं लोगों के साथ में था। उसने माता गुजरी और गुरु गोविंद सिंह के दोनों बेटों को उनके परिवार से मिलाने का भरोसा दिलाया और उन्हें अपने घर लेकर चला गया। गंगू को सोने के मोहरों का लोभ हो गया था। इस वजह से उसने वजीर खां को इनके बारे में खबर कर दी और उस ज़ालिम मुगल बादशाह औरंगजेब के इस ज़ालिम वजीर खां ने बाद में दोनो बेटे जोरावर सिंह और फतेह सिंह को जिंदा दीवार में चुनवा दिया और माता गुजरी को दिसम्बर माह की ठंड में किले के बुर्ज में रखा, जहा अपने दोनों पोतों के गम को सीने में दबाए, कड़ाके की ठंड से माता गुजरी का देहांत हो गया।
चमकौर का युद्ध
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1704 में 21, 22, और 23 दिसम्बर को गुरु गोविंद सिंह और मुगलों की सेना के बीच पंजाब के चमकौर में लड़ा गया था। गुरु गोबिंद सिंह जी 20 दिसम्बर की रात आनंद पुर साहिब छोड़ कर 21 दिसम्बर की शाम को चमकौर पहुंचे थे और उनके पीछे मुगलों की एक विशाल सेना जिसका नेतृत्व वजीर खां कर रहा था, भी 22 दिसम्बर की सुबह तक चमकौर पहुँच गयी।
वजीर खां गुरु गोबिंद सिंह को जीवित या मृत पकड़ना चाहता था। चमकौर के इस युद्ध में गुरु गोबिंद सिंह की सेना में केवल उनके दो बड़े साहिबजादे अजीत सिंह एवं जुझार सिंह और पंडित कृपा राम दत्त व 40 अन्य सिंह थे। इन 43 लोगों ने मिलकर ही वजीर खां की आधी से ज्यादा सेना का विनाश कर दिया था। वजीर खान गुरु गोविंद सिंह को पकड़ने में असफल रहा, लेकिन इस युद्ध में गुरु गोबिंद सिंह जी के दो पुत्रों साहिबज़ादा अजीत सिंह व साहिबज़ादा जुझार सिंह और पंडित कृपा राम दत्त के साथ 40 सिंह भी शहीद हो गए।
गुरु गोविंद सिंह ने इस युद्ध का वर्णन ज़फ़रनामा में किया है। उन्होंने बताया है कि जब वे सरसा नदी को पार कर चमकौर पहुंचे तो किस तरह मुगलों ने उन पर हमला किया।
शत शत नमन करूं मैं आप पंडित कृपा राम दत्त जी और आप सभी अमर शहीदों को.....💐💐💐💐
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