परम् पूज्य संत स्वामी लक्ष्मणानंद जी

परम् पूज्य संत स्वामी लक्ष्मणानंद जी
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बलिदान दिवस 23 अगस्त
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तुम भूल ना जाओ उनको,
इसलिए लिखी ये कहानी,
जो शहीद हुए हैं उनकी,
जरा याद करो कुर्बानी...
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*पंजाब में #धर्मांतरण की आंधी को रोकने के लिए प्रेरक उदाहरण--23 अगस्त -- उड़ीसा में धर्मान्तरण के विरुद्ध आवाज बुलंद करने वाले पूज्य संत स्वामी लक्ष्मणानंद के बलिदान दिवस पर शत - शत नमन।*

         कंधमाल उड़ीसा का वनवासी बहुल पिछड़ा क्षेत्र है। पूरे देश की तरह वहां भी 23 अगस्त, 2008 को जन्माष्टमी पर्व मनाया जा रहा था। रात में लगभग 30-40 क्रूर ईसाइयों ने फुलबनी जिले के तुमुडिबंध से तीन कि. मी. दूर स्थित जलेसपट्टा कन्याश्रम में हमला बोल दिया। 84 वर्षीय देवतातुल्य स्वामी लक्ष्मणानंद उस समय शौचालय में थे। हत्यारों ने दरवाजा तोड़कर पहले उन्हें गोली मारी और फिर कुल्हाड़ी से उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिये।

स्वामी लक्ष्मणानंद जी का परिचय
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           स्वामी जी का जन्म ग्राम गुरुजंग, जिला तालचेर (उड़ीसा) में 1924 में हुआ था। वे गत 45 साल से वनवासियों के बीच चिकित्सालय, विद्यालय, छात्रावास, कन्याश्रम आदि प्रकल्पों के माध्यम से सेवा कार्य कर रहे थे। गृहस्थ और दो पुत्रों के पिता होने पर भी जब उन्हें अध्यात्म की भूख जगी, तो उन्होंने हिमालय में 12 वर्ष तक कठोर साधना की; पर 1966 में प्रयाग कुुंभ के समय संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी तथा अन्य कई श्रेष्ठ संतों के आग्रह पर उन्होंने *‘नर सेवा, नारायण सेवा’ को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया।*

         इसके बाद उन्होेंने फुलबनी (कंधमाल) में सड़क से 20 कि.मी. दूर घने जंगलों के बीच चकापाद में अपना आश्रम बनाया और जनसेवा में जुट गये। इससे वे ईसाई मिशनरियों की आंख की किरकिरी बन गये। स्वामी जी ने भजन मंडलियों के माध्यम से अपने कार्य को बढ़ाया। उन्होंने 1,000 से भी अधिक गांवों में भागवत घर (टुंगी) स्थापित कर श्रीमद्भागवत की स्थापना की। उन्होंने हजारों कि.मी. पदयात्रा कर वनवासियों में हिन्दुत्व की अलख जगाई। उड़ीसा के राजा गजपति एवं पुरी के शंकराचार्य ने स्वामी जी की विद्वत्ता को देखकर उन्हें 'वेदांत केसरी' की उपाधि दी थी।

         जगन्नाथ जी की रथ यात्रा में हर वर्ष लाखों भक्त पुरी जाते हैं; पर निर्धनता के कारण वनवासी प्रायः इससे वंचित ही रहते थे। *स्वामी जी ने 1986 में जगन्नाथ रथ का प्रारूप बनवाकर उस पर श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा की प्रतिमाएं रखवाईं। इसके बाद उसे वनवासी गांवों में ले गये। वनवासी भगवान को अपने घर आया देख रथ के आगे नाचने लगे। जो लोग मिशन के चंगुल में फंस चुके थे, वे भी पुनः हिन्दू बनने को उत्साहित हो उठे। जब चर्च वालों ने इससे आपत्ति की, तो उन्होंने अपने गले में पड़े क्रॉस फेंक दिये। तीन माह तक चली रथ यात्रा के दौरान हजारों लोग हिन्दू धर्म में वापस लौट आये। उन्होंने नशे और सामाजिक कुरीतियों से मुक्ति हेतु जनजागरण भी किया। इस प्रकार मिशनरियों के 50 साल के षड्यन्त्र पर स्वामी जी ने झाड़ू फेर दिया।*

         *स्वामी जी धर्म प्रचार के साथ ही सामाजिक व राष्ट्रीय सरोकारों से भी जुड़े थे। जब-जब देश पर आक्रमण हुआ या कोई प्राकृतिक आपदा आई, उन्होंने जनता को जागरूक कर सहयोग किया; पर चर्च को इससे कष्ट हो रहा था, इसलिए उन पर नौ बार जानलेवा हमले हुए। पर हर बार वे बच गए। हत्या से कुछ दिन पूर्व ही उन्हें धमकी भरा पत्र मिला था।* इसकी सूचना उन्होंने पुलिस को दे दी थी; पर पुलिस ने कुछ नहीं किया। यहां तक कि उनकी सुरक्षा को और ढीला कर दिया गया। इससे संदेह होता है कि चर्च और नक्सली कम्युनिस्टों के साथ कुछ पुलिस वाले भी इस षड्यन्त्र में शामिल थे। स्वामी जी की निर्मम हत्या कर दी गई।

संक्षिप्त जीवनी
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स्वामी लक्ष्मणानंद जी ने वनवासी बहुल फूलबाणी (कन्धमाल) जिले के गांव चकापाद को अपनी कर्मस्थली बनाया। कुछ ही वर्षों में वनवासी क्षेत्रों में उनके सेवा कार्य गूंजने लगे | उन्होंने वनवासी कन्याओं के लिए आश्रम- छात्रावास, चिकित्सालय जैसी सुविधाएं कई स्थानों पर खड़ी कर दीं और बड़े पैमाने पर समूहिक यज्ञ के कार्यक्रम संपन्न कराए।

उन्होने पूरे जिले के गांवों की पदयात्राएं कीं। वहां मुख्यत: कंध जनजातीय समाज ही है। उन्होने उस समाज के अनेक युवक-युवतियों को अपने साथ जोड़ा और देखते ही देखते जन सहयोग से चकापाद में एक संस्कृत विद्यालय शुरू हुआ। जनजागरण हेतु पदयात्राएं जारी रहीं।
26 जनवरी 1970 को 25-30 ईसाई तत्वों के एक दल ने उनके उपर हमला किया। एक विद्यालय में शरण लेकर वे जैसे तैसे बच तो गए, लेकिन उसी दिन उन्होने यह निश्चय भी कर लिया कि मतांतरण करने वाले तत्वों को उड़ीसा से खत्म करना ही है।

उन्होंने चकापाद के वीरूपाक्ष पीठ में अपना आश्रम स्थापित किया। उनकी प्रेरणा से 1984 में कन्धमाल जिले में ही चकापाद से लगभग 50 किलोमीटर दूर जलेसपट्टा नामक घनघोर वनवासी क्षेत्र में कन्या आश्रम, छात्रावास तथा विद्यालय की स्थापना हुई। आज उस कन्या आश्रम छात्रावास में सैकड़ों बालिकाएं शिक्षा ग्रहण करती हैं।
ओड़िशा के जन सामान्य में स्वामी लक्ष्मणानंद जी के प्रति अनन्य श्रद्धा भाव है। सैकड़ों गांवों में पदयात्राएं करके लाखों वनवासियों के जीवन में उन्होंने स्वाभिमान का भाव जगाया।

सन् 1970 से दिसंबर 2007 तक स्वामी जी पर 8 बार जानलेवा हमले किए गए। मगर इन हमलों के बावजूद स्वामी जी का प्रण अटूट था और वह प्रण यही था- मतांतरण रोकना है, जनजातीय अस्मिता जगानी है। स्वामी जी कहते थे- "वे चाहे जितना प्रयास करें, ईश्वरीय कार्य में बाधा नहीं डाल पाएंगे।

लेकिन २३ अगस्त २००८ को जन्माष्टमी समारोह में भगवान् श्रीकृष्ण की आराधना में तल्लीन स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की निर्मम हत्या कर दी गई थी । उनके अपने जलेसपट्टा आश्रम में हत्यारे घुसे और उन्हें गोलियों से भून डाला । हत्यारों ने इतने पर ही बस नहीं किया, बल्कि उनके मृत शरीर को कुल्हाड़ी से भी काट डाला । उनके साथ चार अन्य साधुओं की भी ह्त्या कर दी गई ।

उनकी ह्त्या के बाद समूचा कंधमाल जैसे उबल पडा । बड़े पैमाने पर हुई सांप्रदायिक हिंसा में कम से कम 38 लोग मारे गए और सैकड़ों लोग बेघर हो गये । ओडिशा के अन्य भागों में भी प्रदर्शन व आन्दोलन हुए । आज स्वामी जी के बलिदान दिवस पर उन्हें नमन है 🙏

         *स्वामी जी का बलिदान व्यर्थ नहीं गया। उनकी हत्या के बाद पूरे कंधमाल और निकटवर्ती जिलों में वनवासी हिन्दुओं में आक्रोश फूट पड़ा। लोगों ने मिशनरियों के अनेक केन्द्रों को जला दिया। चर्च के समर्थक अपने गांव छोड़कर भाग गये। अब स्वामी जी के शिष्यों तथा अनेक संतों ने हिम्मत ना हारते हुए सम्पूर्ण उड़ीसा में हिन्दुत्व के ज्वार को और तीव्र करने का संकल्प लिया है।*

हत्या के आरोप में आठ लोगों को गिरफ्तार किया गया और हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा भी सुनाई गई ।
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ये 8 लोग थे मानवता के शत्रु
दुर्योधन सुना मांझी, मुंडा बडमांझी, सनातन बडमांझी, गणनाथ चालानसेठ, बिजय कुमार सनसेठ, भास्कर सनमाझी, बुद्धदेव नायक और माओवादी नेता उदय
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शत शत नमन करूँ मैं आपको परम् पूज्य संत स्वामी लक्ष्मणानंद जी....💐💐💐💐
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#VijetaMalikBJP

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