रानी अवन्ती बाई लोधी
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तुम भूल ना जाओ उनको
इसलिए लिखी ये कहानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
जरा याद करो कुर्बानी..
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*वीरता की प्रतिमूर्ति अवन्ती बाई लोधी*
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*मण्डला (म.प्र.) के रामगढ़ राज्य की रानी अवन्तीबाई ने एक बार अपने पति राजा विक्रमजीत सिंह से कहा कि उन्होंने स्वप्न में एक चील को आपका मुकुट ले जाते हुए देखा है। ऐसा लगता है कि कोई संकट आने वाला है। राजा ने कहा, हाँ, वह संकट अंग्रेजों की ओर से आ रहा है; पर मेरी रुचि अब पूजापाठ में अधिक हो गयी है, इसलिए तुम ही राज संभालकर इस संकट से निबटो।*
रानी अवन्ती बाई अपनी प्रजा से बहुत प्यार करती थी और अपने बच्चों समान उनका ख्याल रखती थी। अवन्ती बाई एक बार मन्त्रियों के साथ बैठी कि लार्ड डलहौजी का दूत एक पत्र लेकर आया। उसमें लिखा था कि राजा के विक्षिप्त होने के कारण हम शासन की व्यवस्था के लिए एक अंग्रेज अधिकारी नियुक्त करना चाहते हैं। रानी समझ गयी कि ये अंग्रेज उनका राज्य हड़पना चाहते हैं और सपने वाली चील आ गयी है। उन्होंने उत्तर दिया कि मेरे पति स्वस्थ हैं। मैं उनकी आज्ञा से तब तक काम देख रही हूँ, जब तक मेरे बेटे अमानसिंह और शेरसिंह बड़े नहीं हो जाते। अतः रामगढ़ को अंग्रेज अधिकारी की कोई आवश्यकता नहीं है।
पर डलहौजी तो राज्य हड़पने का निश्चय कर चुका था। उसने एक अंग्रेज अधिकारी नियुक्त कर दिया। इसी बीच राजा विक्रमजीत सिंह का देहान्त हो गया। अब रानी ने पूरा काम सँभाल लिया। वह जानती थी कि देर-सबेर अंग्रेजों से मुकाबला होगा ही, अतः उसने आसपास के देशभक्त सामन्तों तथा रजवाड़ों से भी सम्पर्क किया। सभी उनका साथ देने को तैयार हो गये।
यह 1857 का काल था। नाना साहब पेशवा के नेतृत्व में अंग्रेजों को बाहर निकालने के लिए संघर्ष की तैयारी हो रही थी। रामगढ़ में भी क्रान्ति का प्रतीक लाल कमल और रोटी घर-घर घूम रही थी। रानी अवन्ती बाई ने भी अपनी प्रजा की खातिर इस यज्ञ में अपनी आहुति देने का निश्चय कर लिया। उनकी लगातार तैयारी देखकर अंग्रेज सेनापति वाशिंगटन ने हमला बोल दिया।
रानी अवन्ती बाई ने भी बिना घबराये खैरी गाँव के पास वाशिंगटन को घेर लिया। रानी के कौशल से अंग्रेजों के पाँव उखड़ने लगे। इसी बीच वाशिंगटन रानी को पकड़ने के लिए अपने घोड़े सहित रानी के पास आ गया। रानी ने तलवार के भरपूर वार से घोड़े की गरदन उड़ा दी। वाशिंगटन नीचे गिर पड़ा और रानी अवन्ती बाई लोधी के पैरों में पड़ कर प्राणों की भीख माँगने लगा। रानी ने दयाकर उसे छोड़ दिया।
पर 1858 में वह फिर रामगढ़ आ धमका। इस बार उसके पास पहले से अधिक सेना तथा रसद थी। उसने किले को घेर लिया; पर तीन महीने बीतने पर भी वह किले में प्रवेश नहीं कर सका। इधर किले में रसद भी समाप्त हो रही थी। अतः रानी कुछ विश्वासपात्र सैनिकों के साथ एक गुप्तद्वार से बाहर निकल पड़ी। इसी बीच किले के द्वार को खोलकर भारतीय सैनिक अंग्रेजों पर टूट पड़े; पर कुछ गद्दारों द्वारा वाशिंगटन को रानी अवन्ती बाई के भागने की सूचना मिल गयी। वह एक टुकड़ी लेकर रानी के पीछे दौड़ा। देवहारगढ़ के जंगल में दोनों की मुठभेड़ हुई।
वह 20 मार्च, 1858 का दिन था। रानी ने काल का रूप धारण कर लिया; वह रणचण्डी बनकर शत्रुओं पर टूट पड़ी और कई अंग्रेजो को मार गिराया। अचानक एक फिरंगी के वार से रानी का दाहिना हाथ कट गया। तलवार छूट गयी। रानी समझ गयी कि अब उनकी मृत्यु निकट है। उन्होंने जेल में सड़ने की अपेक्षा मरना श्रेयस्कर समझा। अतः एक झटके से उन्होंने अपने बायें हाथ से कमर में से अपनी कटार निकाली और अपने सीने में घोंप ली। अगले ही क्षण रानीअवन्ती बाई लोधी का मृत शरीर घोड़े पर झूल गया।
भारतीय स्वतन्त्रता के गौरवशाली इतिहास में आज भी गढ़मण्डल की रानी अवन्तीबाई लोधी का नाम अमर है।
शत-शत नमन करूँ मैं आपको 💐💐💐💐
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#VijetaMalikBJP