छत्रपति सम्भा जी महाराज
छत्रपति सम्भा जी महाराज
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शिवाजी के पुत्र के रूप में विख्यात संभाजी महाराज का जीवन भी अपने पिता छत्रपति शिवाजी महाराज के समान ही देश और हिंदुत्व को समर्पित रहा। सम्भाजी ने अपने बाल्यपन से ही राज्य की राजनीतिक समस्याओं का निवारण किया था और इन दिनों में मिले संघर्ष के साथ शिक्षा-दीक्षा के कारण ही बाल शम्भुजी राजे कालान्तर में वीर संभाजी राजे बन सके थे।
नाम : संभाजी
उपनाम : छवा और शम्भू जी राजे
जन्मदिन : 14 मई 1657
जन्मस्थान : पुरन्दर के किले में
माता : सईबाई
पिता : छत्रपति शिवाजी
दादा : शाहजी भोसले
दादी : जीजाबाई
भाई : राजाराम
बहन : शकुबाई, अम्बिकाबाई, रणुबाई जाधव, दीपा बाई, कमलाबाई पलकर, राज्कुंवार्बाई शिरके
पत्नी : येसूबाई
मित्र और सलाहकार : कवि कौशल
कौशल : संस्कृत के ज्ञाता, कला प्रेमी और वीर योद्धा
युद्ध : 1689 में वाई का युद्ध
शत्रु : औरंगजेब
मृत्यु : 11 मार्च 1689
आराध्य देव : महादेव
मृत्यु का कारण औरंगजेब की दी गयी यातना
उपलब्धि : औरंगजेब के सामने कभी घुटने नहीं टेके, अंतिम सांस तक योद्धा की भांति रहे
हिन्दुओं के जबरन मुसलमान बन जाने पर उनकी घर वापिसी और सम्मान लौटाने का कार्य सफलता पुर्वक किया
संभाजी : जन्म और शिक्षा
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छत्रपति संभाजी महाराज का जन्म 1657 में 14 मई को पुरंदर किले में हुआ था। लेकिन संभाजी के 2 वर्ष के होने तक सईबाई का देहांत हो गया था, इसलिए संभाजी का पालन-पोषण शिवाजी की माँ जीजाबाई ने किया था। संभाजी महाराज को छवा कहकर भी बुलाया जाता था, जिसका मराठी में मतलब होता हैं ..... शावक अर्थात शेर का बच्चा। संभाजी महाराज संस्कृत और 8 अन्य भाषाओ के ज्ञाता थे।
संभाजी : परिवार
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सम्भाजी राजा वीर छत्रपति शिवाजी के पुत्र थे, संभाजी की माता का नाम सईबाई था। ये छत्रपति शिवाजी की दूसरी पत्नी थी। सम्भाजी राजे के परिवार में पिता शिवाजी और माता सईबाई के अलावा दादा शाहजी राजे, दादी जीजाबाई और भाई-बहन थे। शिवाजी की 3 पत्नियां थी – साईंबाई, सोयरा बाई और पुतलाबाई।
साईबाई के पुत्र संभाजी राजे थे। सम्भाजी के एक भाई राजाराम छत्रपति भी थे, जो कि सोयराबाई के पुत्र थे। इसके अलावा संभाजी के शकुबाई, अम्बिकाबाई, रणुबाई जाधव, दीपा बाई, कमलाबाई पलकर, राज्कुंवार्बाई शिरके नाम की बहनें थी। सम्भाजी का विवाह येसूबाई से हुआ था और इनके पुत्र का नाम छत्रपति साहू था।
संभाजी की कवि कलश से मित्रता
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बचपन में संभाजी जब मुग़ल शासक औरंगजेब की कैद से बचकर भागे थे, तब वो अज्ञातवास के दौरान शिवाजी के दूर के मंत्री रघुनाथ कोर्डे के दूर के रिश्तेदार के यहाँ कुछ समय के लिए रुके थे। वहां संभाजी लगभग 1 से डेढ़ वर्ष के लिए रुके थे, तब संभाजी ने कुछ समय के लिए ब्राह्मिण बालक के रूप में जीवन यापन किया था। इसके लिए मथुरा में उनका उपनयन संस्कार भी किया गया और उन्हें संस्कृत भी सिखाई गयी। इसी दौरान संभाजी का परिचय कवि कलश से हुआ. संभाजी का उग्र और विद्रोही स्वभाव को सिर्फ कवि कलश ही संभाल सकते थे।
संंभाजी महाराजकी रचनाय
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उन्होंने अपने उम्र के केवल 14 साल में उन्होंने बुधभूषणम , नखशिखांत , नायिकाभेद तथा सातशातक यह तीन संस्कृत ग्रंथ लिखे थे। मात्र 13 साल की उम्र में तेरा भाषाएं सीख गए थे ।संभाजी महाराज संस्कृत के महान ज्ञानी थे ।
छत्रपती श्री शिवाजी महाराज एक राजतंत्र
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महा पराक्रमी होने के बावजूद उन्हें अनेक लड़ाईयों से दूर रखा गया। स्वभावत: संवेदनशील रहनेवाले संभाजी राजे उनके पिता शिवाजी महाराज जी के आज्ञा अनुसार मुगलों को जा मिले ताकी वे उन्हे गुमराह कर सके। क्यूँकि उसी समय मराठा सेना दक्षिण दिशा के दिग्विजय से लौटी थी और उन्हे फिर से जोश में आने के लिये समय चाहिये था। इसलीये मुगलों को गुमराह करने के लिये छत्रपती श्री शिवाजी महाराज जी ने ही उन्हे भेजा था। वह एक राजतंत्र था। बाद में छत्रपती श्री शिवाजी महाराज जी ने ही उन्हे मुगलों से मुक्त किया।
राज्याभिषेक
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छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद, एक शोक पर्वत उन पर और स्वराज पर टूट पड़ा। लेकिन इस स्थिति में, संभाजी महाराज ने स्वराज्य की जिम्मेदारी संभाली। कुछ लोगों ने धर्मवीर छत्रपती श्री संभाजी महाराज के अनुज राजाराम को सिंहासनासीन करने का प्रयत्न किया। किन्तु सेनापति हंबीरराव मोहिते के रहते यह कारस्थान नाकामयाब हुआ। 16 जनवरी 1681 को संभाजी महाराज का विधिवत् राज्याभिषेक हुआ। उन्होंने अन्नाजी दत्तो और मोरोपंत पेशवा को उदार हृदय से क्षमा कर दिया और उन्हें अष्टप्रधान मंडल में रखा। हालांकि, कुछ समय बाद, अन्नाजी दत्तो और मंत्रियो ने फिर से संभाजी राजे के खिलाफ साजिश रची और राजाराम को राज्याभिषेक के लिए योजना की। संभाजी राजे ने स्वराज्य द्रोही अन्नाजी दत्तो और उनके सहयोगियों को इस वजह से मृत्यु दण्ड दिया।
औरंगजेब का महाराष्ट्र पर आक्रमण
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शिवाजी महाराज के निधन के बाद, मुगल सम्राट औरंगजेब स्वयं स्वराज्य ख़त्म करने के लिए महाराष्ट्र में आया। औरंगजेब ने 1682 में स्वराज पर हमला किया। औरंगजेब 5 लाख की सेना लेकर महाराष्ट्र में आया। 5 लाख सेना, 14 करोड़ का खज़ाना, 40 हज़ार हाथी, 70,000 घोड़े, 35 हज़ार ऊँट। इतना विशाल समुद्र तट था कि औरंगजेब का शिविर 3 मील तक फैला हुआ था।औरंगजेब की ताकत संभाजी राजे की तुलना में सभी मामलों में अधिक थी। औरंगजेब की मुग़ल सेना स्वराज की सेना से पांच गुना से अधिक थी, और उसका राज्य स्वराज्य से कम से कम 15 गुना अधिक था। औरंगजेब की सेना दुनिया की सबसे शक्तिशाली सेना में शामिल थी। संभाजी महाराज के नेतृत्व में, मराठों ने बहुत बहादुरी के साथ लड़ाई लड़ी और एक भी किला औरंगजेब जितने नहीं दिया। औरंगजेब २७ साल महाराष्ट्र में रहा लेकिन उसको मराठों के राज्य को जीतने में सफलता प्राप्त नहीं हुई । यही कारण था कि उत्तर में अनेक हिन्दू राज्य का उदय हुआ।
गोवा के पुर्तगालीयो के खिलाफ युद्ध
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गोवा के पुर्तगालियों को समझाने के बाद उन्होंने औरंगजेब की मदद करने की भी कोशिश की। तब संभाजी महाराज को खुद गोवा का रुख करना पड़ा। गोवा में पिछले कई शताब्दी से पुर्तगालियों का शासन था। उन्होंने पणजी शहर के चारों ओर एक मजबूत किले का निर्माण किया।
गोवा में पुर्तगालियों पर हमला
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संभाजी महाराज, उनकी घुड़सवार सेना, पैदल सेना, पूरी सेना आ गई थी, पुर्तगालियों को पराजित करने के लिए। अब तक, वाइसराय ने केवल संभाजी महाराज की शक्तिशाली कहानियों के बारे में सुना था, वह भयभीत था, वह डर गया था। उसने तुरंत अपने सैनिकों को पीछे हटने का आदेश दिया। पुर्तगाली सेना भी इस आदेश की प्रतीक्षा कर रही थी, और जब आदेश प्राप्त हो जाता, तो वह पीछे की ओर भाग गए । किले पर स्थित मराठे इस दृश्य को देखकर बहुत खुश हुये।
मराठों का आक्रमण इतना जबरदस्त था कि गोवा के वाइसराय को अपनी राजधानी को पणजी से मारमा गोवा में स्थानांतरित करना पड़ा।
गोवा में बहुत से लोग कई वर्षों तक पुर्तगालियों के अत्याचार, यातना और अत्याचार से पीड़ित थे। कई सालों के बाद, वे आज स्वतंत्रता का आनंद ले रहे थे। संभाजी महाराज ने कुछ हिंदू धार्मिक लोगों को वापस ले लिया जो धर्म में ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए थे ।
लड़ाईया
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संभाजी महाराज ने १२८ युद्ध लडे एक भी युद्ध में हार नहीं हुई, इस धर्म के रक्षक, स्वराज्य के रक्षक और शिवराज के शंभु छावा , छत्रपति संभाजी महाराज कहते है। छत्रपति शिवाजी की रक्षा नीति के अनुसार उनके राज्य का किला जीतने की लड़ाई लड़ने के लिए मुगलों को कम से कम एक वर्ष तक अवश्य जूझना पड़ता। औरंगजेब जानता था कि इस हिसाब से तो सभी किले जीतने में 360 वर्ष लग जाएंगे। उसी का एक उदहारण नासिक के पास रामशेज किले की लड़ाई है! औरंगजेब के कमांडरों को उम्मीद थी कि कुछ ही घंटों में किला आत्मसमर्पण कर देगा। लेकिन मराठों ने इतनी कड़ी लड़ाई से विरोध किया कि उन्हें इस किले को जीतने के लिए कुल छह साल तक संघर्ष करना पड़ा। संभाजी राजे ने इन शत्रुओं को, गोवा के पुर्तगालियों, जंजिरेका का सिद्दी और चिक्कादेवराई को इतना कड़ा सबक सिखाया कि औरंगज़ेब को संभाजी महाराज के खिलाफ उनकी मदद करने की कोई हिम्मत नहीं हुई। संभाजी राजे इनमें से किसी भी दुश्मन को पूरी तरह से नष्ट करने में सक्षम थे। उनमें से कोई भी उनके खिलाफ नहीं हो सका। संभाजी महाराज के नेतृत्व में, मराठा ने सभी दुश्मनों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। औरंगजेब ने संभाजी महाराज से मुकाबला करने के लिए अपने पुत्र शाहजादे आजम को तय किया। आजम ने कोल्हापुर संभाग में संभाजी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। उनकी तरफ से आजम का मुकाबला करने के लिए सेनापति हमीबीर राव मोहिते को भेजा गया। उन्होंने आजम की सेना को बुरी तरह से परास्त कर दिया। युद्ध में हार का मुंह देखने पर औरंगजेब इतना हताश हो गया कि बारह हजार घुड़सवारों से अपने साम्राज्य की रक्षा करने का दावा उसे खारिज करना पड़ा। संभाजी महाराज पर नियंत्रण के लिए उसने तीन लाख घुड़सवार और चार लाख पैदल सैनिकों की फौज लगा दी। लेकिन वीर मराठों और गुरिल्ला युद्ध के कारण मुगल सेना हर बार विफल होती गई। औरंगजेब ने बार-बार पराजय के बाद भी संभाजी से महाराज से युद्ध जारी रखा।
दक्खन आक्रमण – दक्षिणी प्रांत के राजा चिक्कदेव पर आक्रमण
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संभाजी राजे ने मैसूर के राजा चिक्कदेव राजा के साथ सुलह करने की कोशिश की थी, लेकिन चिक्कदेव ने मराठा के तीन शक्तिशाली सरदारों का वध कर दिया और श्रीरंगपट्टनम के द्वार पर उसका सिर लटका दिया।
छत्रपति संभाजी महाराज ने औरंगजेब के खिलाफ स्वराज्य संकट की जिम्मेवारी सेनापति हमबीरराव मोहिते के ऊपर सौंपी। संभाजी राजा ने त्रिचनाचली में घेराबंदी की। एक बड़ा युद्ध का मैदान था। मराठा किले पर अग्नि बाण भी चलाते थे। अंत में किला मराठों ने जीत लिया और चिक्कदेव राजा संभाजी की शरण में आया।
पानी पर तैरता पहला तोफखाना संभाजी महाराज ने ही बनाया
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शिवाजी महाराज ने सोचा था कि “भारत की स्वतंत्रता कायम रह सकती है, भारत की स्वतंत्रता की रक्षा समुद्र द्वारा ही की जा सकती है।” और इन्हीं विचारों का अनुसरण करते हुए, संभाजी महाराज ने 4 नए स्थानों में महाड, जैतापूर, कल्याण और राजापुर में नौसेना के केंद्र बनाया । पानी पर तैरता पहला तोफखाना संभाजी महाराज ने ही बनाया ।
धोखाधड़ी
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1689 की शुरुआत में, संभाजी महाराज ने अपने महत्वपूर्ण सरदारों को कोंकण में संगमेश्वर में बुलाया। बैठक पूरी करने के बाद संभाजीराजे रायगढ़ के लिए रवाना हो रहे थे, जिसके चलते छत्रपति संभाजी महाराज ने अपने साथ केवल 200 सैनिक रखके बाकि सेना को रायगड भेज दिया। उसी वक्त उनके एक फितूर जिनको उन्होंने वतनदारी देने से इन्कार किया था गणोजी शिर्के, मुग़ल सरदार मुकरब खान के साथ गुप्त रास्ते से 5000 के फ़ौज के साथ वहां पहुंचा। यह वह रास्ता था जो सिर्फ मराठों को पता था। इसलिए संभाजी महाराज को कभी नहीं लगा था कि शत्रु इस और से आ सकेगा। उन्होंने लड़ने का प्रयास किया किन्तु इतनी बड़ी फ़ौज के सामने 200 सैनिकों का प्रतिकार काम कर ना पाया और अपने मित्र तथा सलाहकार कविकलश के साथ वह बंदी बना लिए गए (1 फरबरी, 1689)।
शारीरिक उत्पीड़न और मौत
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संभाजी महाराज को जब 'दिवान-ए-खास' में औरंगजेब के सामने पेश किया गया औरंगजेब के सामने संभाजी राजे और कवराज बंदी अवस्था में खड़े थे। औरंगजेब से आज तक किसी की हिम्मत नहीं हुई थी नजर से नजर मिलाने की। लेकिन संभाजी राजे सर बिना नीचे झुकाए उसके नजर से नजर मिला रहे थे ।
इस पर संभाजी के साथ कैद कवि कलश ने कहा-'हे राजन, तुव तप तेज निहार के तखत त्यजो अवरंग।'" आखे निकाल दो इस काफिर की " औरंगजेब गुस्से से बोला और उसने कपडे से बंधा हुआ मुह खोलने का आदेश दिया ।" सुअर की औलाद, हम मराठा शेर जैसे जीते है और शेर जैसे मारते है ।" मुह के ऊपर का कपड़ा खुलते हुए गुस्से से बोले ।
औरंगजेब का आज तक ऐसा अपमान किसी ने नहीं किया था । औरंगजेब गुस्से से लाल हो गया ।" आँखे निकालने से पहले इसकी जबान काट डालो और ये सजा पहले इस कवि पर आजमाओ "
औरंगजेब निकल गया पर जाने से पहले उसने एक धूर्त चाल चली । उसे लगा जब कविराज पर ये सजा आजमाई जाएगी तब संभाजी राजे का दिल टूट जायेगा और स्वयं के प्राणों की रक्षा हेतु वह इस्लाम कबूल कर लेंगे, लेकिन औरंगजेब को मालूम नहीं था ये शेर का छावा था अपने धर्म पर मर मिटने वाला। उसे मृत्यु का भय नहीं था । कवि राज ने आखरी बार संभाजी राजे को देखा, उन्हें ज्ञात था कि अब ये आँखें कभी वापस अपने प्राणप्रिय दोस्त को नहीं देखने वाली थी! उनके मुख से आवाज निकली "मुजरा राजे " इस जबान से वापस कभी उनको पुकारा नहीं जानेवाला था। कविराज की पहले जबान काटी गई। फिर आँखें निकाली गयी। यही सजा बाद में संभाजी राजे को दी गयी। उनकी भी पहले जबान काटी गई। फिर आँखें निकाली गयी।
इतनी कठिन सजा भुगतने के बाद भी दोनों के मुख से एक भी आवाज नहीं निकली। यह देखकर इखलास खान भड़क गया। उसने नए जल्लाद की फ़ौज बुलाई और उन्हें आदेश दिया " देखते क्या हो उखाड़ दो इन कुत्तो की खाल और डालो नमक का पानी इन काफिरों पर" इखलास चिल्लाया। जल्लाद आगे बढे। दोनो की खाल उखाड़ी गई और बाद में उसके ऊपर नमक का पानी डाला गया। इस घटना के बाद से ही संभाजी ने अन्न-जल का त्याग कर दिया।
उसके बाद सतारा जिले के तुलापुर में भीमा-इन्द्रायनी नदी के किनारे संभाजी महाराज को लाकर उन्हें लगातार प्रताडि़त किया जाता रहा और बार-बार उन पर इस्लाम कबूल करने का दबाव डाला जाने लगा। आखिर में उनके नहीं मानने पर औरंगजेब ने संभाजी का वध करने का निर्णय लिया गया। इसके लिए 11 मार्च, 1689 का दिन तय किया गया क्योंकि उसके ठीक दूसरे दिन हिन्दू वर्ष प्रतिपदा थी। औरंगजेब चाहता था कि संभाजी महाराज की मृत्यु के कारण हिन्दू जनता वर्ष प्रतिपदा के अवसर पर शोक मनाये।
उसी दिन सुबह दस बजे संभाजी महाराज और कवि को एक साथ गांव की चौपाल पर ले जाया गया। पहले कवि कलश की गर्दन काटी गई। उसके बाद संभाजी के हाथ-पांव तोड़े गए, फिर उनकी गर्दन काट कर उसे पूरे बाजार में जुलूस की तरह निकाला गया।
एक बात तो स्पष्ट है कि जो कार्य औरंगजेब और उसकी सेना आठ वर्षों में नहीं कर सके, वह कार्य एक भेदिये ने कर दिखाया। औरंगजेब ने छल से संभाजी महाराज का वध तो कर दिया, लेकिन वह चाहकर भी उन्हें पराजित नहीं कर सका। संभाजी ने अपने प्राणों का बलिदान कर हिन्दू धर्म की रक्षा की और अपने साहस व धैर्य का परिचय दिया। उन्होंने औरंगजेब को सदा के लिए पराजित कर दिया। तुलापुर स्थित संभाजी महाराज की समाधि आज भी उनकी जीत और अहंकारी व कपटी औरंगजेब की हार को बयान करती है। किन्तु ऐसा कहते हैं कि हत्या पूर्व औरंगजेब ने छत्रपति संभाजी महाराज से कहा के मेरे 4 पुत्रों में से एक भी तुम्हारे जैसा होता तो सारा हिन्दुस्थान कब का मुग़ल सल्तनत में समाया होता।
जब छत्रपति संभाजी महाराज के टुकडे तुलापुर की नदी में फेंकें गए तो उस किनारे रहने वाले लोगों ने वो टुकड़े इकठ्ठा कर के सीलकर के जोड़ दिए (इन लोगों को आज ” शिवले पाटिल ” इस नाम से जाना जाता है) जिस के उपरांत उनका विधिपूर्वक अंत्य संस्कार उस गांव के पाटिल और मराठों ने किया। औरंगजेब ने सोचा था की मराठी साम्राज्य छत्रपति संभाजी महाराज के मृत्यु पश्चात ख़त्म हो जाएगा। लेकिन छत्रपति संभाजी महाराज के हत्या की वजह से सारे मराठा एक साथ आकर लड़ने लगे। अत: औरंगजेब को दक्खन में ही अपने प्राण त्याग करना पड़ा। उसका दक्खन जीतने का सपना इसी भूमि में दफन हो गया।
आखिर तक औरंगजेब कहता रहा.....
“सचमुच छावा हैं छावा शेरं का…
हमनें आँखें निकल दीं उसकी,
लेकिन उसकी आँखें झुकी नहीं हमारें सामने”
“हमनें जबान काँट दी उसकी,
लेकिन उस जबान से उसने मांगे नहीं रहम के दो लब्जं”
“हमनें हाथ काट दिए उसके,
लेकिन नहीं फैलाएं उसने अपने हाथ हमारें सामने”
“हमनें पांव काट दिए उसके,
लेकिन नहीं टेंकें उसने अपने घुटनें हमारें सामने”
“हमनें गर्दन काँट दी उसकी,
लेकिन उसकी गर्दन नहीं झुकी हमारे सामने”
”सचमुच छावा हैं छावा शेरं का”
……या अल्लाह!!! होंगे कामयाब कभीं
या ऐसे ही लौटना पड़ेगा ख़ाली हाथ देहली……
धर्मवीर संम्भाजी महाराज को शत-शत नमन –
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आखिर तक औरंगजेब कहता रहा.....
“सचमुच छावा हैं छावा शेरं का…
हमनें आँखें निकल दीं उसकी,
लेकिन उसकी आँखें झुकी नहीं हमारें सामने”
“हमनें जबान काँट दी उसकी,
लेकिन उस जबान से उसने मांगे नहीं रहम के दो लब्जं”
“हमनें हाथ काट दिए उसके,
लेकिन नहीं फैलाएं उसने अपने हाथ हमारें सामने”
“हमनें पांव काट दिए उसके,
लेकिन नहीं टेंकें उसने अपने घुटनें हमारें सामने”
“हमनें गर्दन काँट दी उसकी,
लेकिन उसकी गर्दन नहीं झुकी हमारे सामने”
”सचमुच छावा हैं छावा शेरं का”
……या अल्लाह!!! होंगे कामयाब कभीं
या ऐसे ही लौटना पड़ेगा ख़ाली हाथ देहली……
धर्मवीर संम्भाजी महाराज को शत-शत नमन –
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शेर शिवा का छावा था |
देश धर्म पर मर मिटने वाला
शेर शिवा का छावा था |
महापराक्रमी परम प्रतापी
एक ही शंभू राजा था ||
तेज : पुंज तेजस्वी आँखे
निकल गयी पर झुका नही |
दृष्टी गयी पर राष्ट्रौंन्नती का
दिव्य स्वप्न तो मिटा नहीं ||
दोनो पैर कटे शंभू के
ध्येय मार्ग से हटा नहीं ||
हाथ कटे तो क्या हुआ
सत्कर्म कभी भी छुटा नहीं ||
जिव्हा कटीं खून बहाया
धरम का सौदा किया नहीं ||
शिवाजी का ही बेटा था वह
गलत राह पर चला नहीं ||
वर्ष तीन सौ बीत गये अब
शंभू के बलिदान को ||
कौन जीता कौन हारा
पूछ लो संसार को ||
कोटी-कोटी कंठा मे तेरा
आज जय जयकार है ||
अमर शंभू तू अमर हो गया
तेरी जय जयकार है ||
मातृभूमी के चरण कमल पर
जीवन पुष्प चढाया था ||
है दुजा दुनिया मैं कोई
जैसा शंभू राजा था ||
– शाहीर योगेश
शत-शत नमन करूँ मैं आपको और आपके बलिदान को ....... 🌺🌺🌺🌺
🙏🙏
#VijetaMalikBJP
देश धर्म पर मर मिटने वाला
शेर शिवा का छावा था |
महापराक्रमी परम प्रतापी
एक ही शंभू राजा था ||
तेज : पुंज तेजस्वी आँखे
निकल गयी पर झुका नही |
दृष्टी गयी पर राष्ट्रौंन्नती का
दिव्य स्वप्न तो मिटा नहीं ||
दोनो पैर कटे शंभू के
ध्येय मार्ग से हटा नहीं ||
हाथ कटे तो क्या हुआ
सत्कर्म कभी भी छुटा नहीं ||
जिव्हा कटीं खून बहाया
धरम का सौदा किया नहीं ||
शिवाजी का ही बेटा था वह
गलत राह पर चला नहीं ||
वर्ष तीन सौ बीत गये अब
शंभू के बलिदान को ||
कौन जीता कौन हारा
पूछ लो संसार को ||
कोटी-कोटी कंठा मे तेरा
आज जय जयकार है ||
अमर शंभू तू अमर हो गया
तेरी जय जयकार है ||
मातृभूमी के चरण कमल पर
जीवन पुष्प चढाया था ||
है दुजा दुनिया मैं कोई
जैसा शंभू राजा था ||
– शाहीर योगेश
शत-शत नमन करूँ मैं आपको और आपके बलिदान को ....... 🌺🌺🌺🌺
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