बलिदानी बालक वीर हकीकत राय
#बलिदानी_बालक_वीर_हकीकत_राय
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*बसंत पंचमी - एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य*
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ऐतिहासिक महत्व -
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वसंत पंचमी का दिन हमें धर्मवीर हकीकतराय के बलिदान दिवस की भी याद दिलाता है।
तुम भूल ना जाओ उनको,
इसलिए लिखी ये कहानी,
जो शहीद हुए हैं उनकी,
ज़रा याद करो कुर्बानी...
भारत वह वीरभूमि है, जहाँ हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देने वालों में छोटे बच्चे भी पीछे नहीं रहे।
हकीकत राय का जन्म पंजाब प्रांत के सियालकोट (वर्तमान पाकिस्तान) में 1719 में एक खत्री व्यापारी घराने में हुआ। हकीकत अपने माता पिता की इकलौती संतान थे। उनके पिता का नाम भागमल तथा माता का नाम गौरा था। बालक हकीकत बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि तथा धार्मिक प्रवृत्ति के थे। अपनी संस्कृति तथा वैदिक धर्म के प्रति उनकी निष्ठा अटूट थी।
उस समय भारत पर मुस्लिम साम्राज्य था, जिसके चलते विद्यालयों की जगह मदरसे हुआ करते थे जिनमें पढ़ाने का काम काजियों का था तथा उर्दू व फारसी राज्यकीय भाषा थी, इसलिए फारसी का ज्ञान होना आवश्यक था, जिस कारण हकीकत के माता पिता ने उन्हें पढ़ाई के लिए मौलवी के पास मदरसे में दाखिल कराया। प्रतिभाशाली होने के कारण बालक हकीकत पढाई में अपने सहपाठियों से प्रथम रहते जो मौलवी पढाते उसे झट से समझ जाते शीघ्र ही उन्हें फारसी का अच्छा ज्ञान हो गया।
लेकिन मुस्लिम छात्रों को वीर हकीकत का प्रतिभाशाली होना अच्छा नहीं लगा, जिसके कारण मुस्लिम छात्र उनसे मन ही मन ईर्ष्या करने लगे। मुस्लिम बच्चे वीर हकीकत से सौतेला व्यवहार करते तथा उनकी पढ़ाई के कार्य में भी व्यवधान पैदा करने लगे। जातिवाद के कारण मौलवी भी बालक हकीकत की परेशानियों पर ध्यान नहीं देते थे।
होनहार हकीकत खेल के समय में भी पुस्तकों का अध्ययन करते थे। एक बार मौलवी को किसी काम से दूसरे गाँव जाना था। उन्होंने बच्चों को पहाड़े याद करने को कहा और स्वयं चले गये। उनके जाते ही सब छात्र खेलने लगे; पर हकीकत एक ओर बैठकर पहाड़े याद करता रहा। यह देखकर मुस्लिम छात्र उसे परेशान करने लगे। इसके बाद भी जब हकीकत विचलित नहीं हुआ, तो एक छात्र ने उसकी पुस्तक छीन ली।
यह देखकर हकीकत बोला - तुम्हें भवानी माँ की कसम है, मेरी पुस्तक लौटा दो। इस पर वह मुस्लिम छात्र बोला - तेरी भवानी माँ की ऐसी की तैसी। हकीकत ने कहा - खबरदार, जो हमारी देवी के प्रति ऐसे शब्द बोले। यदि मैं तुम्हारे पैगम्बर की बेटी फातिमा बी के लिए ऐसा कुछ कहूँ, तो तुम्हें कैसा लगेगा ? लेकिन वह तो लड़ने पर उतारू था। अतः हकीकत उसकी छाती पर चढ़ बैठा और मुक्कों से उसके चेहरे का नक्शा बदल दिया। उसका रौद्र रूप देखकर बाकी छात्र डर कर चुपचाप बैठ गये।
ये विवाद कक्षा के मौलाना के पास पहुंचा काजी ने अपनी इस्लामी कौम के छात्रों का पक्ष लिया और हकीकत को मुस्लिम छात्रों से माफी मांगने के लिए कहा। बालक हकीकत ने यह कहकर माफी मांगने से इंकार कर दिया कि पहले मुस्लिम छात्र ने हमारी माँ दुर्गा भवानी को गालियां दी हैं, इसलिए इसलिए मैं इनसे माफी नहीं मांग सकता। मुस्लिम अध्यापक भी जातिवाद के कारण बालक हकीकत से द्वेष रखते थे इसलिए उन्होंने इस विवाद को सुलझाना नहीं चाहा और ये मामला मुस्लिम अदालत में लाहौर शहर काजी के पास भेज दिया ।
काजी ने मामले को एकतरफा सुनकर निर्दोष हकीकत को लाहौर अदालत की हवालात में बंद करा दिया। मुस्लिम हकूमत थी, हकीकत ने अपना पक्ष रखा तो भी उस निर्दोष बालक की एक ना सुनी गई। राज भी मुस्लिम और हुकम भी मुस्लिमों का। अगले दिन अदालत लगी वीर हकीकत को पेश किया गया, जब हकीकत से उनका पक्ष सुना गया तो उन्होंने सारा वाकया दोहराया लेकिन यहां भी क़ौम का पक्षपात हुआ। हकीकत से अपने पक्ष में गवाह पेश करने के लिए कहा गया लेकिन एक निर्दोष हिन्दू बच्चे से ईर्ष्या और द्वेष के कारण कोई उसकी तरफ से गवाही देने के लिए तैयार नहीं था।
इस मौके पर हकीकत के माता-पिता भी मौजूद थे उन्होंने हकीकत के लिए पल्ला फैला कर माफी की काफी मन्नतें की, लेकिन कोई प्रभाव नहीं हुआ, सब व्यर्थ था। अदालत के काजी ने हुक्म फरमाया कि या तो हकीकत को इस्लाम मजहब अपनाना होगा तो उसकी जान बक्शीश की जाएगी अन्यथा फातिमा को गाली देने के जुर्म में जल्लादों से कत्ल करवाया जाएगा।
ऐसा आदेश सुनकर हकीकत के माता-पिता का कलेजा कांप गया और हकीकत से कहने लगे कि बेटा तू मुस्लिम बन जा, कम से कम जिंदा तो रहेगा। लेकिन धर्म पर अडिग वीर हकीकत राय ने साफ इनकार कर दिया और कहा कि यदि ईश्वर को मुझे मुस्लिम ही बनाना था तो हिंदू परिवार में क्यों जन्म दिया। मैंने हिंदू कुल में जन्म लिया है और मैं हिंदू ही रहूंगा। भरी अदालत में 14 वर्ष के बालक के ऐसे शब्द सुनकर मुस्लिमों में दहशत और क्रोध के मिश्रित भाव थे।
मुस्लिमों की तरफ से बालक हकीकत को जान बख्शने के बदले में कई प्रकार के प्रलोभन दिए गए, लाहौर अदालत के जिस काजी ने हकीकत को तलवार से क़त्ल करने का हुक्म सुनाया था उसने अपनी लड़की को हकीकत के पास हवालात में भेजा। काजी की लड़की ने मुस्लिम मजहब अपनाने के बदले में सजा माफ करवाने और अपनी शादी उससे करने का वचन भी दिया। लेकिन हकीकत ने यह कहकर मना कर दिया कि मेरी शादी तो लक्ष्मी के साथ हो चुकी है, मैं किसी दूसरी क़ौम में दूसरी शादी भला क्यों करूं।
काजी की लड़की वापस चली गई और अपने अब्बा से जाकर कहा कि वह तो अपने धर्म का दीवाना है बहुत हठीला और जिद्दी भी हैं। वह अडिग है जो कभी नहीं डगमगा सकता। अब तो बसंत पंचमी का दिन नजदीक आ चुका था, जब हकीकत को कत्ल किया जाना था आखरी बार हकीकत की माँ ने आकर भी उसे खूब समझाया लेकिन हकीकत नहीं माना। बता दें कि हकीकत की शादी बटाला के साहूकार की लड़की लक्ष्मी से इस किस्से से 10 दिन पहले ही हुई थी । माँ ने कहा बेटा तेरी अभी शादी हुई है, कोई संतान भी नहीं है। हकीकत ने कहा माँ मेरे जैसे और कितने ही हकीकत पैदा होंगे, लेकिन मैं मुस्लिम मजहब अपनाकर अपनी संस्कृति पर धब्बा नहीं लगा सकता और माँ को वापस भेज दिया।
आखिर बसंत पंचमी का दिन आ गया। सुबह के 4:00 बजे थे, प्रजा में रोष था कि आज हकीकत को कत्ल कर दिया जाएगा। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था। लोगों की आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी, लेकिन मुस्लिम साम्राज्य था, कोई कुछ नहीं कर सकता था, लेकिन जो जहां था वह बेहद गमगीन तोर उदास था। सुबह की अजान के शुरू होते ही काजियों की उपस्थिति में जल्लाद ने लाहौर की जेल में 14 वर्ष के निर्दोष बालक वीर हकीकत का सर एक ही बार में धड़ से अलग कर दिया। चारों तरफ करुण क्रंदन और चीत्कार होने लगा। "वीर हकीकत राय अमर रहे" के उद्घोष से आसमान गूंजने लगा।
धर्म पर अडिग रहने वाले अनुपम, अद्वितीय बलिदानी वीर हकीकत की कथा, इस्लाम की क्रूरता, न्याय के नाम पर अन्याय की पराकाष्ठा, पवित्रता और अकाट्यता का परिधान पहनाकर इस्लाम के अत्याचार, अनाचार, अन्याय और अन्धत्व की क्रूर कथा है!
*बसंत पंचमी हिन्दूवीर बालक हकीकत राय के बलिदान दिवस पर भावभीनी श्रद्धांजलि। शत्-शत् नमन् करू मैं आपको 💐💐
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#VijetaMalikBJP
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*बसंत पंचमी - एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य*
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वसंत पंचमी का दिन हमें धर्मवीर हकीकतराय के बलिदान दिवस की भी याद दिलाता है।
तुम भूल ना जाओ उनको,
इसलिए लिखी ये कहानी,
जो शहीद हुए हैं उनकी,
ज़रा याद करो कुर्बानी...
भारत वह वीरभूमि है, जहाँ हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देने वालों में छोटे बच्चे भी पीछे नहीं रहे।
हकीकत राय का जन्म पंजाब प्रांत के सियालकोट (वर्तमान पाकिस्तान) में 1719 में एक खत्री व्यापारी घराने में हुआ। हकीकत अपने माता पिता की इकलौती संतान थे। उनके पिता का नाम भागमल तथा माता का नाम गौरा था। बालक हकीकत बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि तथा धार्मिक प्रवृत्ति के थे। अपनी संस्कृति तथा वैदिक धर्म के प्रति उनकी निष्ठा अटूट थी।
उस समय भारत पर मुस्लिम साम्राज्य था, जिसके चलते विद्यालयों की जगह मदरसे हुआ करते थे जिनमें पढ़ाने का काम काजियों का था तथा उर्दू व फारसी राज्यकीय भाषा थी, इसलिए फारसी का ज्ञान होना आवश्यक था, जिस कारण हकीकत के माता पिता ने उन्हें पढ़ाई के लिए मौलवी के पास मदरसे में दाखिल कराया। प्रतिभाशाली होने के कारण बालक हकीकत पढाई में अपने सहपाठियों से प्रथम रहते जो मौलवी पढाते उसे झट से समझ जाते शीघ्र ही उन्हें फारसी का अच्छा ज्ञान हो गया।
लेकिन मुस्लिम छात्रों को वीर हकीकत का प्रतिभाशाली होना अच्छा नहीं लगा, जिसके कारण मुस्लिम छात्र उनसे मन ही मन ईर्ष्या करने लगे। मुस्लिम बच्चे वीर हकीकत से सौतेला व्यवहार करते तथा उनकी पढ़ाई के कार्य में भी व्यवधान पैदा करने लगे। जातिवाद के कारण मौलवी भी बालक हकीकत की परेशानियों पर ध्यान नहीं देते थे।
होनहार हकीकत खेल के समय में भी पुस्तकों का अध्ययन करते थे। एक बार मौलवी को किसी काम से दूसरे गाँव जाना था। उन्होंने बच्चों को पहाड़े याद करने को कहा और स्वयं चले गये। उनके जाते ही सब छात्र खेलने लगे; पर हकीकत एक ओर बैठकर पहाड़े याद करता रहा। यह देखकर मुस्लिम छात्र उसे परेशान करने लगे। इसके बाद भी जब हकीकत विचलित नहीं हुआ, तो एक छात्र ने उसकी पुस्तक छीन ली।
यह देखकर हकीकत बोला - तुम्हें भवानी माँ की कसम है, मेरी पुस्तक लौटा दो। इस पर वह मुस्लिम छात्र बोला - तेरी भवानी माँ की ऐसी की तैसी। हकीकत ने कहा - खबरदार, जो हमारी देवी के प्रति ऐसे शब्द बोले। यदि मैं तुम्हारे पैगम्बर की बेटी फातिमा बी के लिए ऐसा कुछ कहूँ, तो तुम्हें कैसा लगेगा ? लेकिन वह तो लड़ने पर उतारू था। अतः हकीकत उसकी छाती पर चढ़ बैठा और मुक्कों से उसके चेहरे का नक्शा बदल दिया। उसका रौद्र रूप देखकर बाकी छात्र डर कर चुपचाप बैठ गये।
ये विवाद कक्षा के मौलाना के पास पहुंचा काजी ने अपनी इस्लामी कौम के छात्रों का पक्ष लिया और हकीकत को मुस्लिम छात्रों से माफी मांगने के लिए कहा। बालक हकीकत ने यह कहकर माफी मांगने से इंकार कर दिया कि पहले मुस्लिम छात्र ने हमारी माँ दुर्गा भवानी को गालियां दी हैं, इसलिए इसलिए मैं इनसे माफी नहीं मांग सकता। मुस्लिम अध्यापक भी जातिवाद के कारण बालक हकीकत से द्वेष रखते थे इसलिए उन्होंने इस विवाद को सुलझाना नहीं चाहा और ये मामला मुस्लिम अदालत में लाहौर शहर काजी के पास भेज दिया ।
काजी ने मामले को एकतरफा सुनकर निर्दोष हकीकत को लाहौर अदालत की हवालात में बंद करा दिया। मुस्लिम हकूमत थी, हकीकत ने अपना पक्ष रखा तो भी उस निर्दोष बालक की एक ना सुनी गई। राज भी मुस्लिम और हुकम भी मुस्लिमों का। अगले दिन अदालत लगी वीर हकीकत को पेश किया गया, जब हकीकत से उनका पक्ष सुना गया तो उन्होंने सारा वाकया दोहराया लेकिन यहां भी क़ौम का पक्षपात हुआ। हकीकत से अपने पक्ष में गवाह पेश करने के लिए कहा गया लेकिन एक निर्दोष हिन्दू बच्चे से ईर्ष्या और द्वेष के कारण कोई उसकी तरफ से गवाही देने के लिए तैयार नहीं था।
इस मौके पर हकीकत के माता-पिता भी मौजूद थे उन्होंने हकीकत के लिए पल्ला फैला कर माफी की काफी मन्नतें की, लेकिन कोई प्रभाव नहीं हुआ, सब व्यर्थ था। अदालत के काजी ने हुक्म फरमाया कि या तो हकीकत को इस्लाम मजहब अपनाना होगा तो उसकी जान बक्शीश की जाएगी अन्यथा फातिमा को गाली देने के जुर्म में जल्लादों से कत्ल करवाया जाएगा।
ऐसा आदेश सुनकर हकीकत के माता-पिता का कलेजा कांप गया और हकीकत से कहने लगे कि बेटा तू मुस्लिम बन जा, कम से कम जिंदा तो रहेगा। लेकिन धर्म पर अडिग वीर हकीकत राय ने साफ इनकार कर दिया और कहा कि यदि ईश्वर को मुझे मुस्लिम ही बनाना था तो हिंदू परिवार में क्यों जन्म दिया। मैंने हिंदू कुल में जन्म लिया है और मैं हिंदू ही रहूंगा। भरी अदालत में 14 वर्ष के बालक के ऐसे शब्द सुनकर मुस्लिमों में दहशत और क्रोध के मिश्रित भाव थे।
मुस्लिमों की तरफ से बालक हकीकत को जान बख्शने के बदले में कई प्रकार के प्रलोभन दिए गए, लाहौर अदालत के जिस काजी ने हकीकत को तलवार से क़त्ल करने का हुक्म सुनाया था उसने अपनी लड़की को हकीकत के पास हवालात में भेजा। काजी की लड़की ने मुस्लिम मजहब अपनाने के बदले में सजा माफ करवाने और अपनी शादी उससे करने का वचन भी दिया। लेकिन हकीकत ने यह कहकर मना कर दिया कि मेरी शादी तो लक्ष्मी के साथ हो चुकी है, मैं किसी दूसरी क़ौम में दूसरी शादी भला क्यों करूं।
काजी की लड़की वापस चली गई और अपने अब्बा से जाकर कहा कि वह तो अपने धर्म का दीवाना है बहुत हठीला और जिद्दी भी हैं। वह अडिग है जो कभी नहीं डगमगा सकता। अब तो बसंत पंचमी का दिन नजदीक आ चुका था, जब हकीकत को कत्ल किया जाना था आखरी बार हकीकत की माँ ने आकर भी उसे खूब समझाया लेकिन हकीकत नहीं माना। बता दें कि हकीकत की शादी बटाला के साहूकार की लड़की लक्ष्मी से इस किस्से से 10 दिन पहले ही हुई थी । माँ ने कहा बेटा तेरी अभी शादी हुई है, कोई संतान भी नहीं है। हकीकत ने कहा माँ मेरे जैसे और कितने ही हकीकत पैदा होंगे, लेकिन मैं मुस्लिम मजहब अपनाकर अपनी संस्कृति पर धब्बा नहीं लगा सकता और माँ को वापस भेज दिया।
आखिर बसंत पंचमी का दिन आ गया। सुबह के 4:00 बजे थे, प्रजा में रोष था कि आज हकीकत को कत्ल कर दिया जाएगा। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था। लोगों की आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी, लेकिन मुस्लिम साम्राज्य था, कोई कुछ नहीं कर सकता था, लेकिन जो जहां था वह बेहद गमगीन तोर उदास था। सुबह की अजान के शुरू होते ही काजियों की उपस्थिति में जल्लाद ने लाहौर की जेल में 14 वर्ष के निर्दोष बालक वीर हकीकत का सर एक ही बार में धड़ से अलग कर दिया। चारों तरफ करुण क्रंदन और चीत्कार होने लगा। "वीर हकीकत राय अमर रहे" के उद्घोष से आसमान गूंजने लगा।
धर्म पर अडिग रहने वाले अनुपम, अद्वितीय बलिदानी वीर हकीकत की कथा, इस्लाम की क्रूरता, न्याय के नाम पर अन्याय की पराकाष्ठा, पवित्रता और अकाट्यता का परिधान पहनाकर इस्लाम के अत्याचार, अनाचार, अन्याय और अन्धत्व की क्रूर कथा है!
*बसंत पंचमी हिन्दूवीर बालक हकीकत राय के बलिदान दिवस पर भावभीनी श्रद्धांजलि। शत्-शत् नमन् करू मैं आपको 💐💐
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