बसन्त पंचमी

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥

समस्त देश एवं प्रदेशवासियों को बसंत पंचमी एवं सरस्वती पूजा की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। यह बसंत आप सभी के जीवन में सुख-समृद्धि एवं धन वैभव की वर्षा करें। 

#HappyVasantPanchami
#BasantPanchami2021
#SaraswatiPooja


*बसंत पंचमी - एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य*
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बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ | इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।

ऐतिहासिक महत्व -
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वसंत पंचमी का दिन हमें पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी हमलावर मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और सद्गुण विकृति के कारण उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और उनकी आंखें फोड़ दीं।

इसके बाद की घटना तो जगप्रसिद्ध ही है। गौरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा। पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर गौरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत किया। 
तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया।

*चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण ।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान ॥*

पृथ्वीराज चौहान ने इस बार भूल नहीं की। उन्होंने तवे पर हुई चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह गौरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान दे दिया। 1192 ई की यह घटना भी वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी।

आज धर्मवीर हकीकतराय बलिदान दिवस भी है
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भारत वह वीरभूमि है, जहाँ हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देने वालों में छोटे बच्चे भी पीछे नहीं रहे। 1719 में स्यालकोट (वर्त्तमान पाकिस्तान) के निकट एक ग्राम में श्री भागमल खत्री के घर जन्मा हकीकतराय ऐसा ही एक धर्मवीर था।

हकीकतराय के माता-पिता धर्मप्रेमी थे। अतः बालपन से ही उसकी रुचि अपने पवित्र धर्म के प्रति जाग्रत हो गयी। उसने छोटी अवस्था में ही अच्छी संस्कृत सीख ली। उन दिनों भारत में मुस्लिम शासन था। अतः अरबी-फारसी भाषा जानने वालों को महत्त्व मिलता था। इसी से हकीकत के पिता ने 10 वर्ष की अवस्था में फारसी पढ़ने के लिए उसे एक मदरसे में भेज दिया। बुद्धिमान हकीकत वहाँ भी सबसे आगे रहता था। इससे अन्य मुस्लिम छात्र उससे जलने लगे। वे प्रायः उसे नीचा दिखाने का प्रयास करते थे; पर हकीकत सदा अध्ययन में ही लगा रहता था।

एक बार मौलवी को किसी काम से दूसरे गाँव जाना था। उन्होंने बच्चों को पहाड़े याद करने को कहा और स्वयं चले गये। उनके जाते ही सब छात्र खेलने लगे; पर हकीकत एक ओर बैठकर पहाड़े याद करता रहा। यह देखकर मुस्लिम छात्र उसे परेशान करने लगे। इसके बाद भी जब हकीकत विचलित नहीं हुआ, तो एक छात्र ने उसकी पुस्तक छीन ली।

यह देखकर हकीकत बोला - तुम्हें भवानी माँ की कसम है, मेरी पुस्तक लौटा दो। इस पर वह मुस्लिम छात्र बोला - तेरी भवानी माँ की ऐसी की तैसी। हकीकत ने कहा - खबरदार, जो हमारी देवी के प्रति ऐसे शब्द बोले। यदि मैं तुम्हारे पैगम्बर की बेटी फातिमा बी के लिए ऐसा कहूँ, तो तुम्हें कैसा लगेगा ? लेकिन वह तो लड़ने पर उतारू था। अतः हकीकत उसकी छाती पर चढ़ बैठा और मुक्कों से उसके चेहरे का नक्शा बदल दिया। उसका रौद्र रूप देखकर बाकी छात्र डर कर चुपचाप बैठ गये।

थोड़ी देर में मौलवी लौट आये। मुस्लिम छात्रों ने नमक-मिर्च लगाकर सारी घटना उन्हें बतायी और कहा कि हकीकत ने फातिमा बी को गाली दी है। इस पर मौलवी ने हकीकत की पिटाई की और उसे सजा के लिए काजी के पास ले गये। काजी ने इस सारे विवाद को लाहौर के बड़े इमाम के पास भेज दिया। उसने सारी बात सुनकर निर्णय दिया कि हकीकत ने इस्लाम का अपमान किया है। अतः उसे मृत्युदण्ड मिलेगा; पर यदि वह मुसलमान बन जाये, तो उसे क्षमा किया जा सकता है।

बालवीर हकीकत ने सिर ऊँचा कर कहा - मैंने हिन्दू धर्म में जन्म लिया है और हिन्दू धर्म में ही मरूँगा। मौलवियों ने उसे और भी कई तरह के प्रलोभन दिये। हकीकत के माता-पिता और पत्नी भी उसे धर्म बदलने को कहने लगे, जिससे वह उनकी आँखों के सामने तो रहे; पर हकीकत ने स्पष्ट कह दिया कि व्यक्ति का शरीर मरता है, आत्मा नहीं। अतः मृत्यु के भय से मैं अपने पवित्र हिन्दू धर्म का त्याग नहीं करूँगा।

अन्ततः 4 फरवरी, 1734 (वसन्त पंचमी) को उस धर्मप्रेमी बालक का सिर काट दिया गया।
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बेटा तेरा हकीकत पकड़या गया स्कूल मैं
जा कै नै छटवा ल्यारी क्यूं बैठी भूल मैं....

छोटे बड़े देवता नैं न्यू कोसण लागगे
हकीकत का बस्ता तख्ती खोसण लागगे
दो मारैं दो हाथ पकड़ कै न्यूं मोसण लागगे
राम लखण हनुमान थारे नै वे दोसण लागगे
उसकी आंख्यां के म्हां पाणी आग्या एकै रूल मैं।

तफरी कै म्हां मास्टर आगै सुणाई हो गई
फेर तफरी मैं बच्चों की लड़ाई हो गई
उड़ै हिन्दु और मुस्लिम की खिंचाई हो गई
और आपस कै म्हां मास्टर आगै सुणाई हो गई
तुम देखो बाट ब्याज की थारै धोखा मूल मैं।

थी मामूली सी बात लड़ाई ना मोटी
के बेरा था किस्मत इस की होज्यागी खोटी
भली करी थी पणमेशर नै उसनै कोन्या ओटी
धिंगताणै तै मंडगे पाड़ण उस की पठे चोटी
एक गाड़ा बोल्या सुण ले हकीकत म्हारे रुल मैं।

दो चार क हिन्दु थे सारे जमात मैं
मारो मारो होण लागगी एकै स्यात मैं
थोड़ी देर हुई डर्या ना बिल्कुल गात मैं
कह मेहर सिंह इतनी सुण कै भरग्या जोश गात मैं
चौगरदे कै बाड़ खड़ी थी ना कुछ वसूल मैं।

बढ़ती बढ़ती ज्यादा बढ़गी थी या बात जरा सी
ला द्यो ला द्यो हकीकत कै फांसी.....

अरबी तुर्किस्तान काबली कन्धारी पठान बोले
म्हारी बीबी फातिमा तै न्यूं क्यूं बुरी जुबान बोले
सै फांसी का हकदार हकीकत न्यूं सारे मुस्लमान बोले
हिन्दु से मुस्लमान बणा द्यो बदल दो ईमान बोले
काफिर और हरामजादे सुअर की सन्तान बोले
दुनियां तै ल्हको द्यो खो द्यो हकीकत की ज्यान बोले
दरोगा दरबान मुसद्दी न्यूं कहरे थे चपड़ासी।

गाली का अफशोश मोटा सारे गिला करने लागे
छोटे बड़े अफसर सारे मिलकै सलाह करने लागे
जर्मन रूस जापानी ईटली आले ठल्ला करने लागे
हाय खुदा हाय खुदा अल्लाह अल्लाह करने लागे
आपस कै म्हां काना फूसी काजी मुल्ला करने लागे
फांसी दे दो फांसी के दो सारे हल्ला करने लागे
इस पाजी के लिए सोच लो मौत सजा खासी।

दुनियां कै म्हां घूम कै देख ल्यो तमाम म्हारे
पुलिस थाणे मिलिटरी फौजों के इन्तजाम म्हारे
हकूमत और राजधानी शहर कस्बे गाम म्हारे
या अली के नारे लागैं सुबह और शाम म्हारे
कैसे गली बकदे हिन्दु होकै नै गुलाम म्हारे
जमीन खां असमान खां और जहानखां तक नाम म्हारे
इस काफिर का खोज मिटा द्यो ना फेर करेगा बदमाशी।

भागमल के कोठी बंगले तोड़कै दलान कर दो
घर की ठोड़ तला खुदवा कै गहरा सा तलान कर द्यो
ऊपर नै मुंह उठ रह्या सै नीचे नै ढ़लान कर द्यो
कोए कह धकड़ा मुकड़ा कोए कहै फलान कर द्यो
यहां से खारज करो मुकदमा लाहौर का चलान कर द्यो
हकीकत की मौत का सारेकै ऐलान कर द्यो
जाट मेहर सिंह रोवै थी खड़ी जड़ मैं दिल की दासी।

राज पाट धन दौलत का के रोब जमाओ सो
हकीकत की जान काढ ल्यो और के चाहवो सौ....

खिंचाताणी मेरे साथ बेफायदी होरी सै
पतिव्रता के साथ देहात म्हं शादी होरी सै
रंज फिक्र म्हं सूख लक्ष्मी आधी होरी सै
वा पड़ी घरां मैंपड़या जेल म्हं न्यूं बरबादी होरी सै
बार-बार इन बातां नैं के याद दुवाओ सौ।

पूरे गुरू तैं ज्ञान हुअया सै ना मैं मनूष अधूरा सूं
सतपुरुषों के लिए ज्ञान का तै मैदा चूरा सूं
कटण मरण तै डरता कोन्या क्षत्री सूरा सूं
सर जाओ चाहे धड़ जाओ पर मैं जिद्द का पूरा सूं
ईब धी बेटी माया का भी के लोभ दिखयाओ सो।

भारत मां का पूत सपूत मैं जेठा सूं
कर्मा का निर्भाग चान्दड़ा इतना हेठा सूं
और हिन्दू डरपोक भतेरे मैं लीडर टेठा सूं
ईब भाले और कटारी का के जोर दखाओ सौ।

थारी बी जद्द नै देखूंगा मेरी तो याहे आंट सै
हकीकत बता दयो थारे तैं यो क्या म्हं घाट सै
राम छोड़ कै खुदा कहूं ना मेरी तो बिल्कुल नाट सै
बेशक सर नै काट लियो बता क्यां की बाट सै
मेहर सिंह जंग झोणा रोणा के गाणा गाओ सो।

*बसंत पंचमी हिन्दूवीर बालक हकीकत राय के बलिदान दिवस पर भावभीनी श्रद्धांजलि*
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