बांके वीर बल्लू चंपावत

दो-दो बार वीरगति को प्राप्त होने वाले वीर राजपूत योद्धा की रोचक गाथा
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✍️उस वीर ने केवल एक ही बार जन्म लिया तथा एक ही भार्या से विवाह किया ,परन्तु अपने वचन का निर्वाह करते हुए वह वीर दो-दो बार लड़ता हुआ वीर-गति को प्राप्त हुआ |

✍️आईये आज परिचित होते है उस बांके वीर बल्लू चंपावत से जिसने एक बार वीर गति प्राप्त करने के बावजूद भी अपने दिए वचन को निभाने के लिए युद्ध क्षेत्र में लौट आया और दुबारा लड़ते हुए वीर गति प्राप्त की …

✍️जोधपुर के महाराजा गजसिंह ने अपने जयेष्ट पुत्र अमरसिंह को जब राज्याधिकार से वंचित कर देश निकला दे दिया तो बल्लूजी चाम्पावत व भावसिंह जी कुंपावत दोनों सरदार अमरसिंह के साथ यह कहते हुए चल दिए कि यह आपका विपत्ति काल हैं व आपत्ति काल में हम सदैव आपकी सहायता करेंगे ,यह हमारा वचन हैं। और दोनों ही वीर अमरसिंह के साथ बादशाह के पास आगरा आ गए। यहाँ आने पर बादशाह ने अमरसिंह को नागौर परगने का राज्य सौंप दिया। अमरसिंह जी को मेंढे लड़ाने का बहुत शौक था इसलिए नागौर में अच्छी किस्म के मेंढे पाले गए और उन मेंढों की भेड़ियों से रक्षा हेतु सरदारों की नियुक्ति की जाने लगी और एक दिन इसी कार्य हेतु बल्लू चांपावत की भी नियुक्ति की गयी इस पर बल्लूजी यह कहते हुए नागौर छोड़कर चल दिए कि ” मैं विपत्ति में अमरसिंह के लिए प्राण देने आया था ,मेंढे चराने नहीं।

✍️ अब अमरसिंह के पास राज्य भी हैं ,आपत्ति काल भी नहीं, अत: अब मेरी यहाँ जरुरत नहीं है |
और बल्लू चांपावत महाराणा के पास उदयपुर चले गए , वहां भी अन्य सरदारों ने महाराणा से कहकर उन्हें निहत्थे ही “सिंह” से लड़ा दिया | सिंह को मारने के बाद बल्लूजी यह कर वहां से भी चल दिए कि वीरता की परीक्षा दुश्मन से लड़ाकर लेनी चाहिए थी। जानवर से लड़ाना वीरता का अपमान है। और यह कहकर उन्होंने उदयपुर भी छोड़ दिया किन्तु महाराणा बल्लु जी की वीरता से अति प्रसन्न हुए और महाराणा ने मित्रता की सौगंध देकर मित्रता पक्की कर ली…

✍️इसके बाद जब सन् 1644-45 के करीब अमरसिंह राठौड़ आगरा के किले में सलावत खां को मारने के बाद खुद धोखे से मारे गए , तब उनकी रानी हाड़ी ने सती होने के लिए अमरसिंह का शव आगरे के किले से लाने के लिए बल्लू चांपावत व भावसिंह कुंपावत को बुलवा भेजा ………क्योंकि विपत्ति में सहायता का वचन उन्ही दोनों वीरों ने दिया था…

✍️बल्लूजी चाम्पावत ने जैसे ही यह दुखद समाचार सुना तो वह सन्न रह गया। अमरसिंह राठौड़ जैसे शूरवीर योद्घा के समय मुगल बादशाही का ऐसा क्रूरतापूर्ण कृत्य सुनकर चाम्पावत का चेहरा तमतमा गया। उसने आसन्न संकट का सामना करने और मां भारती की अपेक्षाओं पर खरा उतरने का निश्चयय किया….. बल्लू चाम्पावत के हृदय में देशभक्ति और स्वामी भक्ति की सुनामी मचलने लगी, उसकी भुजाएं फडकने लगीं, उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि ऐसी घटना और वह भी अमरसिंह राठौड़ के साथ हो सकती है? उसने बिना समय खोये निर्णय लिया, तलवार उठायी और एक योद्घा की भांति मां भारती के ऋण से उऋण होने का संकल्प लेकर चल दिया….

✍️अभी बल्लू सिंह ने एक पग ही रखा था कि बाहर से एक सेवक दौड़ा हुआ आया। उसने बल्लू चाम्पावत से कहा कि ”महोदय मेवाड़ के महाराणा ने आपको स्मरण करते हुए एक घोड़ा भेंट स्वरूप आपकी सेवा में भेजा है।”
बल्लू चाम्पावत की आर्थिक स्थिति उस समय अच्छी नहीं थी। उसने जब यह समाचार सुना कि मेवाड़ के महाराणा ने एक घोड़ा उसके लिए भेजा है तो उसे हार्दिक प्रसन्नता हुई, क्योंकि जिस मनोरथ के लिए वह निकल रहा था-उसके लिए घोड़े की नितांत आवश्यकता थी। इसलिए बल्लू चाम्पावत को लगा कि महाराणा के द्वारा भेजे गये घोड़े की शुभसूचना उसी समय मिलना जब इसकी आवश्यकता थी-निश्चय ही एक शुभ संयोग हैं। उसने अपने लक्ष्य की साधना के लिए मेवाड़ी घोड़े का ही प्रयोग करने का निर्णय लिया। उसके मेवाड़ से आये व्यक्ति को ससम्मान अपने प्रयोजन की जानकारी देकर बताया कि महाराणा जी से हमारा प्रणाम बोलना और उन्हें हमारी विवशता की जानकारी देकर यह भी बता देना कि बल्लू चाम्पावत यदि अपनी लक्ष्य साधना में सफल होकर जीवित लौट आया तो आपके चरणों में उपस्थित होकर अवश्य ही भेंट करेगा और यदि नही लौट सका तो भी संकट के समय अवश्य ही उपस्थित होऊंगा……

✍️अब बल्लू चाम्पावत की दृष्टि में केवल आगरा दुर्ग चढ़ चुका था, उसे एक पल भी कहीं व्यर्थ रूकना एक युग के समान लग रहा था। इसलिए बिना समय गंवाये वह आगरा की ओर चल दिया। उसके कई साथी उसके साथ थे। घोड़ों की टाप से जंगल का एकांत गूंजता था। मानो भारत के शेर दहाड़ते हुए शत्रु संहार के लिए सन्नद्घ होकर चढ़े चले जा रहे थे। शत्रु निश्चिंत था। उसे नहीं लग रहा था कि कोई ‘माई का लाल’ अमरसिंह राठौड़ के शव को उठाकर ले जाने में सफल भी हो सकता है? यद्यपि बादशाह के सैनिक अमरसिंह राठौड़ के शव की पूरी सुरक्षा कर रहे थे और अपने दायित्व का निर्वाह पूर्णनिष्ठा के साथ कर रहे थे। फिर भी उनमें निश्चिंतता का भाव था, उनके भीतर यह भावना थी कि किले के भीतर आकर शव को उठाने का साहस किसी का नही हो सकता। बस, यह सोचना ही उनकी दुर्बलता थी और उनकी सुरक्षा व्यवस्था का सबसे दुर्बल पक्ष भी यही था…

✍️अमरसिंह राठौड़ का शव दुर्ग के बीचों-बीच रखा था। उधर बल्लूजी चाम्पावत तीव्र वेग के साथ किले की ओर भागा आ रहा था। उसके दल के घोड़ों के वेग के सामने आज वायु का वेग भी लज्जित हो रहा था। हवा आज उसका साथ दे रही थी और बड़े सम्मान के साथ उसे मार्ग देती जा रही थी।

✍️अचानक मुगल सैनिकों के बीच एक नौजवान वीर लड़ाई लड़ रहा है बल्लु जी को समझतें देर न लगी कि एक तीव्र वायु का झोंका मुगल दुर्ग के द्वारों को धक्का देकर भीतर प्रवेश कर रहा है। वह नौजवान अमर सिंह जी की भतीजा राम सिंह ही हैं इससे पूर्व कि वह उस वायु के वेग को समझ पाते कि यह कोई हवा ना होकर मां भारती का सच्चा सपूत बल्लूसिंह चाम्पावत अपने स्वामी के शव के पास मुगल सैनिकों से लड़ते हुए राम सिंह और बल्लु सिंह जी दुर्ग में प्रवेश कर चुके थे। मुगल सैनिक दुर्ग में उनके प्रवेश की कहानी को समझ नही पाये और इससे पहले कि वह उसे शव के पास घेर पाते भारत के यह शेर अपने स्वामी को एक झटके के साथ उठाकर अपने घोड़े सहित दुर्ग की दीवार की ओर लपके मुगल सैनिकों ने दुर्ग के द्वार की ओर मोर्चा लेना चाहा, पर बल्लू दुर्ग के द्वार की ओर न बढक़र किले की दीवार पर घोड़े सहित जा चढ़ा वहां से उसने घोड़े को नीचे छलांग लगवा दी और अमर सिंह राठौड़ के शव को तो बल्लू ने राम सिंह को को दे दिया और उन्हें वहां से बाहर भी निकाल दिया, पर वीर बल्लु जी चांपावत स्वयं किले के भीतर ही युद्घ करते-करते बलिदान हो गया….

✍️यंहा पर बल्लु जी चांपावत ने प्रथम बार वीरगति प्राप्त की थी…

✍️इस घटना के कुछ समय बाद जब सन् 1680-82 के करीब मेवाड़ के महाराणा राजसिंह का मुग़ल बादशाह औरंगजेब से युद्ध हुआ तो लोगों ने देखा कि बल्लू चांपावत उसी घोड़ी (जो महाराणा ने उसे भेंट दी थी ) पर बैठ कर तलवार बजा रहा हैं। 1644-45 मे आगरे में तलवार बजाते वीर-गति को प्राप्त हुए बल्लू चांपावत को आज दूसरी बार ” देबारी ” की घाटी में तलवार बजाते हुए फिर वीर-गति को प्राप्त होते हुए लोगों ने देखा |

🚩इतिहास की इस अदभुत घटना को भले ही आज के भौतिकवादी न माने पर मेवाड़ का इतिहास इस बात को भुला नहीं सकता कि वह क्षत्रिय मृत्यु के उपरांत भी अपना वचन निभाने के लिए देबारी की घाटी में युद्ध लड़ने आया था।

🚩जय हो वीर बल्लु जी चांपावत की🚩
🚩शत शत नमन करूँ मैं आपको 💐💐💐

🙏🙏

#VijetaMalikBJP🚩

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