अहोई अष्टमी

💐💐💐अहोई अष्टमी💐💐💐
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*31 अक्टूबर को है इस वर्ष अहोई अष्टमी-:
आप भी जाने अहोई अष्टमी का शुभ मुहूर्त, व्रत कथा,महत्व और पूजा की विधि।*

हर वर्ष कृष्णा जन्माष्टमी से हिन्दू धर्म में त्योहारों की शुरुआत हो जाती है। कृष्णा जन्माष्टमी के बाद मां दुर्गा के नवरात्र उसके बाद दशहरा और फिर पति की लम्बी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत और फिर अहोई अष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है। अहोई अष्टमी दिवाली से आठ दिन पहले मनाई जाती है। करवा चौथ के व्रत के बाद विवाहित महिलाएं अहोई अष्टमी का व्रत अपनी संतान के लिए करती है।

शास्त्रों में मान्यता है कि इस दिन जो भी विवाहित महिला अपनी संतान के लिए इस व्रत को करती है अहोई माता उनकी संतान की हर दुःख और विपदा से रक्षा करती है. अहोई अष्टमी का व्रत प्राचीन काल में महिलाएं केवल पुत्र के लिए ही करती थी लेकिन अब समय बदलने के साथ ही ये व्रत महिलाएं पुत्रियों के लिए भी रखने लगी है। अहोई अष्टमी पर माता पार्वती की पूजा की जाती है।

कब मनाया जाती है अहोई अष्टमी :
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अहोई अष्टमी हर वर्ष करवा चौथ के बाद मनाई जाती है. करवा चौथ कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को और उसके बाद अहोई अष्टमी कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है.इस वर्ष अहोई अष्टमी का व्रत 31 अक्टूबर को मनायी जा रही है. इस व्रत को केवल वही महिलाएं करती है जिनकी संतान होती है. इस दिन भी महिलाएं करवा चौथ की तरह ही सोलह श्रृंगार करती है और अपने बच्चों की लम्बी उम्र के लिए पूरा दिन व्रत रखती है. हालाँकि अब जिन महिलाओं की संतान नहीं है वह भी संतान प्राप्ति की इच्छा से इस व्रत को कर सकती है.

रख रहे है अहोई अष्टमी का व्रत, तो न करें ये काम-:

1) अहोई अष्टमी पर का व्रत करने वाली महिलाएं इस दिन काले और सफ़ेद वस्त्र न पहने। ये दोनों ही रंग अशुभ  माने जाते है.

2) अहोई अष्टमी का व्रत करने वाली महिलाएं इस दिन कैंची का प्रयोग न करें। कैंची का प्रयोग करना इस दिन पूर्ण रूप से वर्जित बताया गया है. इसी के साथ सब्जी भी नहीं काटनी चहिये और न ही मिटटी खोदनी चाहिए।

3) इस दिन महिलाएं जुआ न खेलें और न ही किसी की निंदा करें।

4) महिलाएं प्रयास करें कि व्रत रखने के बाद अपने बच्चों पर हाथ न उठाएं। ऐसा करने से आपके व्रत का पुण्य नष्ट हो जायेगा।

5) बच्चो से प्यार से बात करें और प्रयास करें कि बच्चों की सारी इच्छाएं पूरी करें।

6) इस दिन श्रृंगार करते समय यदि कोई चूड़ी टूट जाए तो उसे बहते पानी में प्रवाह कर दें. इसके अलावा तामसिक भोजन बिलकुल भी न करें।

अहोई अष्टमी पर पूजन का शुभ मुहूर्त-:
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हर व्रत को अगर शुभ मुहूर्त पर खोला और पूजन किया जाए तो उसका विशेष फल मिलता है. संतान के लिए रखे जाने वाले व्रत अहोई अष्टमी की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम को 5 बजकर 45 मिनट से 7 बजे तक रहेगा। इसी दौरान महिलाएं व्रत की कथा सुने और पूजा करें।

अहोई अष्टमी का व्रत खोलने का समय
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अहोई अष्टमी का व्रत तारा देखकर खोला जाता है. इस वर्ष अहोई अष्टमी पर तारा देखने का समय शाम को 6 बजकर 12 मिनट पर है. तारे को अर्घ्य देकर ही महिलाएं अपना व्रत खोलें।

अहोई अष्टमी व्रत विधि
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1) अहोई अष्टमी के दिन सूर्योदय से पहले उठे और स्नान करके साफ़ और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

2) फिर अपने घर के मंदिर में पूजा करें और पूरा दिन व्रत करने का संकल्प लें.

3) उसके बाद दिवार पर गेरू और चावल से माता पार्वती और स्याहु वह उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएं। हालाँकि आजकल बाजार में चित्र भी उपलब्ध हो जाते है.

4) फिर माता पार्वती के सामने चावल से भरा हुआ कटोरा, मूली, सिंघाड़े और दीपक जलाकर रखें।

5) इसके बाद लोटे में पानी भरकर उसके ऊपर करवे में पानी भरकर रखे मां पार्वती के सामने उसे स्थापित करें। ध्यान रहे कि यह वही करवा होना चहिये जो महिलाओं ने करवा चौथ के दिन इस्तेमाल किया था. दिवाली के दिन इस जल का पूरे घर में छिड़काव किया जाता है।

6) अब अंत में महिलाएं हाथ में चावल रखकर अहोई अष्टमी की व्रत कथा पढ़े और फिर मां की आरती उतारें।

7) फिर चावल को अपने पल्लू में बाँध लें.

8) शाम को बताये गए शुभ मुहूर्त में अहोई माता की पूजा करें और 14 पुरियों आठ पुओं और खीर का भोग लगाएं। उत्तर भारत में इस दिन महिलाएं खाने में पूरी के अलावा विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाती है.

9) माता को लाल रंग के फूल अर्पित करना न भूलें क्योंकि लाल रंग के पुष्प मां को बहुत प्रिय है.

10) प्रातःकाल स्थापित किये गए लोटे के जल को तारा निकलने के बाद लोटे में चावल डालकर उसका अर्घ्‍य दें.

11) इसके बाद बायना निकाले जिसमे 14 पूरियां मठरी और काजू रखे जाते है. इस बायने को घर में मौजूद बड़े बुजुर्ग को  सम्मानपूर्वक दें.

12) अंत में घर के सभी बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लेकर खाना खाएं।

अहोई अष्टमी व्रत कथा
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प्राचीन काल में एक साहुकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थीं. इसके अलावा साहुकार की एक बेटी भी थी जो  दीपावली में ससुराल से मायके आई थी. दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गईं तो ननद भी उनके साथ चली गई. साहुकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने सात बेटों से साथ रहती थी. मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी की चोट से स्याहू का एक बच्चा मर गया. स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली, "मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी".

स्याहू के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक-एक कर विनती करती रही कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें. सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है. इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं. सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा. पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी.

सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है. रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं. अचानक साहुकार की छोटी बहू देखती है कि एक सांप गरुड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है. इतने में गरुड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चे के मार दिया है. इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है. छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है. गरुड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है.

वहां स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहू होने का अशीर्वाद देती है. स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहू का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा-भरा हो जाता है।

आप सभी बहनों व माताओं को अहोई अष्टमी व्रत की हार्दिक शुभकामनाएं ........
........ विजेता मलिक

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