ज़रा याद करो कुर्बानी
मेरे दोस्तों,
आप सब तो खैर जानते ही हैं, पर अपनी इस नौजवान पीढ़ी को ये याद दिलाना ज़रूरी है कि 20 दिसम्बर से 27 दिसम्बर तक के ये 7 दिन हम भारतवासियों के लिये शोक के दिन होते हैं। इन सात दिनों में गुरु गोविन्द सिंह जी ने अपने चारों बेटों को मुगल शासक ज़ालिम औरंगज़ेब के ज़ुल्मों से हम सब भारतवासियों की रक्षा करने के लिये कुर्बान कर दिया था और गुरु गोबिंद सिंह जी की माता गुजरी देवी जी की भी अपने पुत्रों (पोतों) की शहादत के गम में मृत्यु हो गई थी। और हम भारतवासी ये सब भूलकर 25 दिसम्बर को क्रिसमस का जश्न मनाते हैं। बहुत ही शर्म की बात हैं। जश्न मनाइये, मगर उन महान अमर शहीदों की याद को भी दिल मे रखें ......🌹🌹🙏🌹🌹
खालसा पंथ के संस्थापक व गुरु होने के साथ महान योद्धा व आध्यात्मिक नेता भी थे गुरु गोविंद सिंह जी। अद्भुत है इनकी कहानी ..... राष्ट्र की खातिर बेटों को कर दिया था कुर्बान .........
जबलपुर। सिख समाज के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जन-जन की आस्था में तो हैं ही, उनका नाम राष्ट्रवीरों और अद्भुत योद्धाओं में भी शुमार हैं। उन्होंने देश की आन-बान और शान की खातिर अपने पुत्रों को कुर्बान कर दिया था। उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की और लोगों को मुगलों के अन्याय के खिलाफ खड़े होने के लिए प्रोत्साहित किया। गोविंद सिंह राय से गुरु गोविंद सिंह कहलाए। 16 जनवरी को उनकी जयंती के अवसर पर हर तरफ उनके नाम की गूंज है। गुरुद्वारों में उनके नाम का शबद कीर्तन गूंज रहा है और धरती के इस लाल को श्रद्धा के सुमन चढ़ाए जा रहे हैं।
नहीं डिगा स्वाभिमान
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गुरु गोविन्द सिंह सिखों के दसवें गुरु थे। उनका जन्म बिहार के पटना शहर में हुआ था। उनके पिता गुरू तेग बहादुर की मृत्यु के उपरान्त 11 नवम्बर सन 1675 को वे गुरू बने। वह एक महान योद्धा, कवि एवं आध्यात्मिक नेता थे। मुगलों ने उनसे आत्मसमर्पण करने को कहा था, उन्होंने समर्पण करने की बजाय, उन्हें चुनौती दे दी। इस पर मुगलों ने उनके पुत्रों की निर्ममता पूर्वक हत्या कर दी है। इस वक्त गुरुदेव ने कहा था कि देश की आन-बान और शान के लिए ऐसे कई पुत्र कुर्बान हैं। उन्होंने शोक मनाने की बजाय लोगों से अपील की कि वे नई पीढ़ी को अन्याय के खिलाफ खड़ा करें।
ये था हौसला
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खालसा पंथ की स्थापना के बाद औरंगजेब ने पंजाब के सूबेदार वजीर खां को आदेश दिया कि सिखों को मारकर गोविन्द सिंह को कैद कर लिया जाये। गोविंद सिंह ने अपने मुठ्ठी भर सिख जांबाजों के साथ मुगल सेना से डटकर मुकाबला किया और मुगलों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। तभी गोविंद सिंह जी ने कहा ......
" चिड़िया संग बाज लड़ाऊं,
तहां गोविंद सिंह नाम कहाऊं"
......... गोविंद सिंह जी ने मुगलों की सेना को चिडिय़ा कहा और सिखों को बाज के रूप में संबोधित किया।
कच्छा, कड़ा और कृपाण
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खालसा की स्थापना करने के बाद गुरू गोविंद सिंह जी ने बड़ा सा कड़ाह मंगवाया। इसमे स्वच्छ जल भरा गया। उनकी पत्नी सुंदरी ने इसमें बताशे डाले। पंच प्यारों ने कड़ाह में दूध डाला और गुरुजी ने गुरुवाणी का पाठ करते हुए उसमें खंडा चलाया। इसके बाद गुरुजी ने कड़ाहे से शरबत निकालकर पांचो शिष्यों को अमृत रूप में दिया और कहा, तुम सब आज से सिंह कहलाओगे और अपने केश तथा दाढी बढ़ाओगे। गुरू जी ने कहा कि केशों को संवारने के लिए तुम्हे एक कंघा रखना होगा। आत्मरक्षा के लिए एक कृपाण लेनी होगी। सैनिकों की तरह तुम्हें कच्छा धारण करना पड़ेगा और अपनी पहचान के लिए हाथों में कड़ा धारण करना होगा। इसके बाद गुरू जी ने सख्त हिदायत दी कि कभी किसी निर्बल व्यक्ति पर हाथ मत उठाना। इसके बाद से सभी सिख खालसा पंथ के प्रतीक के रूप में केश, कंघा, कृपाण, कच्छा और कड़ा ये पांचों चिन्ह धारण करने लगे। नाम के साथ सिंह शब्द का प्रयोग किया जाने लगा। इस घटना के बाद से ही गुरू गोविंद राय गोविंद सिंह कहलाने लगे।
यहां ली थी यहां अंतिम सांस
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महाराष्ट्र के नांदेड शहर में स्थित हजूर साहिब सचखंड गुरुद्वाराÓ विश्व भर में प्रसिद्ध है। यहीं पर गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने प्रिय घोड़े दिलबाग के साथ अंतिम सांस ली थी। गुरु गोविंद सिंह जी ने धर्म प्रचार के लिए यहां अपने कुछ अनुयायियों के साथ पड़ाव डाला था, इसी दौरान सरहिंद के नवाब वजीर शाह ने अपने दो आदमी भेजकर उनकी हत्या करवा दी थी। ऐसा कहा जाता है कि यह हत्या धार्मिक तथा राजनैतिक कारणों से कराई गई थी।
पवित्र ग्रंथ को उत्तराधिकारी मानने का आदेश
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अपनी मृत्यु को समीप देखकर गुरु गोबिन्द सिंह जी ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में किसी अन्य को गुरु चुनने के बजाय सभी सिखों को आदेश दिया कि मेरे बाद आप सभी पवित्र ग्रन्थ को ही गुरु मानें। इस आदेश के बाद से ही पवित्र ग्रन्थ को गुरु ग्रन्थ साहिब कहा जाता है।
जबलपुर में गुरू गोविंद सिंह खालसा सोसायटी की ओर हजारों बच्चों की शिक्षा के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। इन्हें शिक्षा के साथ संस्कारों का ज्ञान देने का भी प्रयास जाता है। गुरूगोविंद सिंह की जयंती को धूमधाम से मनाया जा रहा है।
ऐ मेरे वतन के लोगो ........
कुछ याद उन्हें भी कर लो
जो लौट के घर ना आये
जो लौट के घर ना आये ........
तुम भूल न जाओ उनको
इसलिए सुनो ये कहानी
जो शहीद हुऐ हैं उनकी
जरा याद करो कुर्बानी ........
दस-दस को एक ने मारा
फिर गिर गये होश गँवा के
जब अन्त समय आया तो!
कह गये के अब मरते हैं
ख़ुश रहना देश के प्यारो
अब हम तो सफ़र करते हैं
क्या लोग थे वो दीवाने
क्या लोग थे वो अभिमानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुरबानी
थे धन्य जवान वो अपने
थी धन्य वो उनकी जवानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुरबानी
कोई सिख कोई जाट मराठा
कोई गुरखा कोई मदरासी
इस देश पे मरनेवाला
हर वीर था भारतवासी
जो ख़ून गिरा धरती पर
वो ख़ून था हिंदुस्तानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुरबानी .......
थी खून से लथपथ काया
फिर भी तलवार उठाके
दस-दस को एक ने मारा
फिर गिर गये होश गँवा के
जब अन्त समय आया तो!
कह गये के अब मरते हैं
ख़ुश रहना देश के प्यारो
अब हम तो सफ़र करते हैं
क्या लोग थे वो दीवाने
क्या लोग थे वो अभिमानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो कुर्बानी .......
तुम भूल न जाओ उनको
इसलिये कही ये कहानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुरबानी ......
शत-शत नमन करूँ मैं 🙏🙏🌺🌺
जय हिन्द।
#VijetaMalikBJP