अमर शहीद करनैल सिंह बेनिपाल जी


अमर शहीद करनैल सिंह बेनिपाल
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तुम भूल ना जाओ उनको,
इसलिए सुनो ये कहानी,
जो शहीद हुए हैं उनकी,
जरा याद करो कुर्बानी.....
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साथियों, आज अमर शहीद करतार सिंह सराभा जी की जयंती हैं, हम सब भारतवासी उन्हें याद कर रहे हैं। पर एक व्यक्ति ऐसा भी था जिसके शहीद करतार सिंह सराभा, शहीद भगत सिंह, शहीद ऊधम सिंह, जैसे महान अमर शहीद जिसके आदर्श थे और वो अपने स्कूल में व अन्य मीटिंग में अक्सर इनके क़िस्से, कहानियां व गीत अपने साथियों को सुनाया करते थे और अपने आदर्श इन्हीं अमर शहीदों की तरह एक दिन खुद भी शहीद हो गए। वो थे "अमर शहीद करनैल सिंह बेनिपाल ( बेनीवाल )"। आइये जानते हैं कुछ उनके बारे मे ........

अमर शहीद करनैल सिंह बेनिपाल ( बेनीवाल )
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करनैल सिंह बेनिपाल जी का जन्म 9 सितम्बर 1930 को ज़िला लुधियाना के खन्ना क़स्बे के पास इस्सरू गाँव में हुआ था । उनके पिता का नाम सरदार सुन्दर सिंह व माता का नाम हरनाम कौर था। जब करनैल सिंह मात्र 7 वर्ष के ही थे तो इनके पिता जी चल बसे। करनैल सिंह की चार बहने व तीन भाई थे। पिता की मृत्यु ये बाद इनकी माता जी व बड़े भाई ने इनका बड़े लाड़ प्यार से लालन-पालन किया ।

शहीद करतार सिंह सराभा, शहीद भगत सिंह, शहीद ऊधम सिंह के बारे मे वो अकसर औरों से सुनते रहते थे और उन्हें अपना आदर्श भी मानते थे और स्कूल में अपने दूसरे साथियों को अक्सर इनके क़िस्से गीत सुनाया करते थे।

गोरों (अंग्रेजों) से आज़ादी के बाद भी गोवा पुर्तगालियों के साम्राज्य के अधीन था। गोवा की आज़ादी के लिए 1955 में पूना में गोवा विमोचन सहायक समिति बनी और सभी भारतियों से आह्वान किया गया। करनैल सिंह जिनकी अपनी भाभी की छोटी बहन चरनजीत कौर से मई 1955 को ब्याह हुआ था, इसके बावजूद भी वो अपनी नई नवेली दुल्हन को समझा-बुझा कर GVSS के इस आह्वान पर गोवा की आज़ादी के सत्याग्रह आंदोलन में शरीक होने जा पहुँचे। 15 अगस्त 1955 को मध्यप्रदेश से श्रीमती सहोदरादेवी राय सागर जो अपने हाथ में तिरंगा झंडा लिए सत्याग्रह जुलूस की अगुवाई कर रही थी, उन पर पुर्तगाली अधिकारी ने गोली चला दी, जो सहोदरादेवी के बाजु को छू कर निकल गई। सहोदरादेवी घायल होकर ज़मीन पर गिर पड़ी। करनैल सिंह जो जुलूस में पीछे थे, उन्हें पुर्तगालियों के इस कायरतापूर्ण रवैये पर बड़ा ग़ुस्सा आया, वे आगे बढ़कर आए और घायल सहोदरादेवी जी के हाथ से तिरंगा लेते हुए और अपनी क़मीज़ फाड़ कर गरजते हुए उस पुर्तगाली अधिकारी को ललकारा कि एक निहत्थी औरत पर गोली क्या चलाते हो, हिम्मत है तो मेरे सीने पर गोली चलाओ, पुर्तगाली अधिकारी ने गुस्से से करनैल सिंह को घूरा और फिर उस कायर पुर्तगाली अधिकारी ने इस सूरमा की छाती पर दनादन गोलियाँ दाग़ दी, जिससे करनैल सिंह वहीं ज़मीन पर गिर पड़े। पच्चीस साल का यह जोशिला नौजवान करनैल सिंह वहीं शहीद हो गया। मगर उनकी शहादत व्यर्थ नहीं गई और कुुुछ साल बाद भारत सरकार व भारतीय सेना के प्रयासों से गोवा को पुर्तगालियों से आज़ाद करा कर अखण्ड भारत का हिस्सा बना दिया गया।

गोवा में आज भी इस अमर शहीद करनैल सिंह जी का बुत लगा हुआ है और वहाँ हर बरस इनकी शहादत को याद किया जाता है।

शहीद करनैल सिंह की विधवा पत्नी चरनजीत कौर जो उस वक़्त मात्र सत्रह वर्ष की थी और उनके विवाह को तीन महीने ही हुए थे, जब वो विधवा हुई थी, हालाँकि जाटों में विधवा विवाह की प्रथा है, पर इन्होंने पुनर्विवाह नहीं किया और अपना सारा जीवन अपने अमर शहीद पति करनैल सिंह की यादों को ही समर्पित कर दिया। सल्यूट है 🙏..... चरनजीत कौर जी के जज़्बे और समर्पण को। चरनजीत कौर हरियाणा के अंबाला शहर में रहती हैं।

तो ये हैं अमर शहीद करनैल सिंह जी की शहादत और उनकी महान पत्नी चरनजीत कौर जी के त्याग और समर्पण की कहानी। अगर इसे पढ़कर आपका दिल भर आया हो और आँखे नम हुई हो तो दूसरों को भी बताने के लिए इसे आगे शेयर कर दीजिएगा।

अब बताती हूँ आपको करनैल सिंह जैसे अमर बलिदानियों व भारतीय सेना के द्वारा 36घण्टे से भी ज्यादा चले युद्ध के बाद मिली गोवा की आजादी की कहानी.....

पणजी
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19 दिसंबर देश के इतिहास में वह तारीख है, जिस दिन भारतीय सेना ने गोवा, दमन और दीव को करीब 450 साल के पुर्तगाली साम्राज्य से आजाद कराया था। वह वर्ष था 1961। 18 दिसंबर 1961 को भारतीय सेना ने गोवा में ऑपरेशन विजय की शुरुआत की और 19 दिसंबर को पुर्तगाली सेना ने आत्मसर्पण कर दिया।

दरअसल, भारत सरकार की बार-बार आजादी की मांग के बावजूद पुर्तगाली शासन इन इलाकों को आजाद करने के लिए तैयार नहीं था। ऐसे में 18 दिसंबर 1967 को ऑपरेशन विजय की कार्रवाई शुरू हुई। भारतीय सैनिकों ने गोवा में प्रवेश किया और युद्ध शुरू हुआ। बताया जाता है कि 36 घंटे से भी ज्यादा समय तक चले इस युद्ध में 19 दिसंबर को भारतीय सेना ने गोवा को आजाद करा लिया।

पुर्तगाली सेना ने बिना किसी शर्त के 19 दिसंबर को भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया और इस तरह गोवा आजाद हो गया। कहा जाता है कि आकार में छोटे होने के बावजूद गोवा शुरू से ही बड़ा ट्रेड सेंटर रहा है। अपनी लोकेशन की वजह से यह अंग्रेजों को शुरू से ही आकर्षित करता रहा है। इतना ही नहीं मुगल शासन के समय भी राजा इस तरफ आकर्षित होते रहे हैं।

बताया जाता है कि गोवा की आजादी के लिए 1950 के आसपास प्रदर्शन ने जोर पकड़ा। 1954 में भारत समर्थक गोवा के स्वतंत्रता सेनानियों ने दादर और नागर हवेली को मुक्त करा लिया। यहां से आंदोलन और तेज हुआ। 1955 में करीब 3000 से अधिक सत्याग्रहियों ने गोवा की आजादी के लिए आंदोलन शुरू कर दिया। इसके बाद पुर्तगाली सेना ने आंदोलन को कुचलने के लिए हिंसक रूप अख्तियार कर लिया। इस हिंसा में करनैल सिंह जी जैसे बलिदानी बड़े पैमाने पर मारे गए। लेकिन इन्ही बलिदानियों की वजह से अब ये चिंगारी आग का रूप ले चुकी थी। तनाव बढ़ा और भारत ने पुर्तगाल से सभी राजनयिक संबंध खत्म कर लिए। साथ ही भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी इस मामले को उठाया। हालांकि भारत की इस कोशिश का कोई फायदा नहीं हुआ और बाद में भारत को सैन्य कार्रवाई करनी पड़ी।

30 मई 1987 में गोवा बना राज्य
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गोवा यूं तो 1967 में आजाद हो गया लेकिन 30 मई 1987 को उसे राज्य का दर्जा दिया गया। इस तरह से गोवा आजाद होकर भारत में शामिल हुआ गोवा भारत का एक नया राज्य बना। वहीं गोवा के साथ आजाद हुए दमन और दीव केंद्रशासित प्रदेश के रूप में बने हुए हैं।

शत-शत नमन करूँ मैं करनैल सिंह, उनकी पत्नी चरनजीत कौर और गोवा की आजादी की लड़ाई में हुए सभी अमर शहीदों को.....💐💐💐💐
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#VijetaMalikBJP

#HamaraAppNaMoApp


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