डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी 
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पुण्यतिथि : जून 23, 1953

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तुम भूल ना जाओ उनको,
इसलिए लिखी ये कहानी,
जो शहीद हुए हैं उनकी,
जरा याद करो कुर्बानी...
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डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी कौन नहीं जानता। वे एक महान चिन्तक थे। देश के लिए कुछ भी करने की लगन थी। ऐसे महान चिंतक की आज (23 जून) पुण्य तिथि है। आइए ऐसे महान व्यक्ति को हम श्रद्धा सुमन अर्पित करते है।

संक्षिप्त जीवन परिचय ........
अपने पुत्र की असामयिक मृत्यु का समाचार सुनने के पश्चात डॉ मुखर्जी की माता योगमाया देवी ने कहा था :
“मेरे पुत्र की मृत्यु भारत माता के पुत्र की मृत्यु है।”
भारत माता के इस वीर पुत्र का जन्म 6  जुलाई 1901 को एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। इनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी बंगाल में एक शिक्षाविद् और बुद्धिजीवी के रूप में प्रसिद्ध थे।

डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के पिता सर आशुतोष मुखर्जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे शिक्षाविद् के रूप में जाने जाते थे। डॉ॰ मुखर्जीजी ने वर्ष 1917 में मैट्रिक उत्तीर्ण हुए। वर्ष 1921 में BA की डिग्री हासिल की। वर्ष 1923 में विधि की उपाधि पास की। इसके बाद वे विदेश चले गये। वर्ष 1926 में इंग्लैण्ड से बैरिस्टर उपाथि लेकर स्वदेश लौटे आये।

डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी जब 33 वर्ष के थे तब वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने। कुलपति पद पर नियुक्ति पाने वाले वे सबसे कम उम्र के कुलपति बने थे। इसके बाद मुखर्जी एक विचारक और शिक्षाविद् के रूप में उनकी ख्याति चारों ओर बढ़ती गयी। डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने लोगों को जागृत करने के उद्देश्य से राजनीति में प्रवेश किया। डॉ॰ मुखर्जी मानवता के उपासक थे। उन्होने कृषक प्रजा पार्टी से मिलकर प्रगतिशील गठबन्धन का निर्माण किया।
इसी समय वे वीर सावरकर के राष्ट्रवाद के प्रति आकर्षित हुए और हिन्दू महासभा में शामिल हुए। इसी दौरान मुस्लिम लीग की राजनीति से देश का वातावरण दूषित हो रहा था। देश में साम्प्रदायिक विभाजन की नौबत आ रही थी। यह देख ब्रिटिश सरकार साम्प्रदायिक लोगों को प्रोत्साहित कर रही थी। ऐसी हालत में मुखर्जी ने बीड़ा उठाया कि देश में हिन्दुओं की उपेक्षा न हो। वे अपनी रणनीति से मुस्लिम लीग के प्रयासों को पूरी तरह से नाकाम कर दिया।

डॉ॰ मुखर्जी की यह धारणा थी कि हम सब एक हैं। इसलिए धर्म के आधार पर वे देश के विभाजन का विरोधी किया। उनका मानना था कि विभाजन सम्बन्धी उत्पन्न हालात ऐतिहासिक और सामाजिक थी। वे मानते थे कि हम सब एक हैं। हममें कोई फर्क नहीं है। हम सब एक ही लहू के हैं। हमारी भाषा एक है। हमारी संस्कृति है। हमारी विरासत एक है। यह देखकर लोगों के दिलों में उनके प्रति प्यार बढ़ता ही गया।

इसी दौरान यानी अगस्त, 1946 में कलकत्ता में भयंकर बर्बरतापूर्वक मारकाट हुई। ब्रिटिश की भारत विभाजन की रहस्य योजना और षड्यन्त्र को कांग्रेस के नेताओं ने अखण्ड भारत सम्बन्धी अपने वादों को ताक पर रखकर स्वीकार कर लिया था। ऐसे समय में डॉ॰ मुखर्जी ने बंगाल और पंजाब के विभाजन की माँग उठाकर प्रस्तावित पाकिस्तान का विभाजन कराया और आधा बंगाल और आधा पंजाब खण्डित भारत के लिए बचा लिया।

इसी क्रम में महात्मा गान्धीजी और सरदार पटेल के अनुरोध पर वे भारत के मन्त्रिमण्डल में शामिल हुए। उन्हें उद्योग जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गयी। संविधान सभा और प्रान्तीय संसद के सदस्य और केन्द्रीय मंत्री के नाते उन्होंने शीघ्र ही अपना विशिष्ट स्थान बना लिया। मगर उनके राष्ट्रवादी चिन्तन के चलते अन्य नेताओं से मतभे बने रहे। इसके चलते उन्होंने राष्ट्रीय हितों की प्रतिबद्धता को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता मानने के कारण मन्त्रिमण्डल से त्यागपत्र दे दिया।

इसके बाद मुखर्जी ने एक नई पार्टी बनाई, जो उस समय वह सबसे बड़ा विरोधी पक्ष था। इस प्रकार अक्टूबर, 1951 में भारतीय जनसंघ का उदय हुआ। डॉ॰ मुखर्जी हमेशा जम्मू-कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग मानते थे। उस समय जम्मू-कश्मीर का अलग झण्डा और अलग संविधान था।

डॉ॰ मुखर्जी ने संसद में अपने भाषण में धारा-370 को समाप्त करने की भी जोरदार वकालत की थी। उन्होंने अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में अपना यही संकल्प व्यक्त किया था। उन्होंने कहा कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इसके लिए अपना जीवन बलिदान कर दूँगा। साथ ही तात्कालिन जवाहरलाल नेहरू की सरकार को चुनौती दी।

दूसरे जिस कारण से डा. मुखर्जी को याद किया जाता है, वह है जम्मू कश्मीर के भारत में पूर्ण विलय की माँग को लेकर उनके द्वारा किया गया सत्याग्रह एवं बलिदान। 1947 में भारत की स्वतन्त्रता के बाद गृहमन्त्री सरदार पटेल के प्रयास से सभी देसी रियासतों का भारत में पूर्ण विलय हो गया; पर प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू के व्यक्तिगत हस्तक्षेप के कारण जम्मू कश्मीर का विलय पूर्ण नहीं हो पाया। उन्होंने वहाँ के शासक राजा हरिसिंह को हटाकर शेख अब्दुल्ला को सत्ता सौंप दी। शेख जम्मू कश्मीर को स्वतन्त्र बनाये रखने या पाकिस्तान में मिलाने के षड्यन्त्र में लगा था।

शेख ने जम्मू कश्मीर में आने वाले हर भारतीय को अनुमति पत्र लेना अनिवार्य कर दिया। 1953 में प्रजा परिषद तथा भारतीय जनसंघ ने इसके विरोध में सत्याग्रह किया। नेहरू तथा शेख ने पूरी ताकत से इस आन्दोलन को कुचलना चाहा; पर वे विफल रहे। पूरे देश में यह नारा गूँज उठा - एक देश में दो प्रधान, दो विधान, दो निशान: नहीं चलेंगे।

इसके बाद अपने संकल्प को पूरा करने के लिये मुखर्जी 1953 में बिना किसी अनुमति के जम्मू कश्मीर की ओर निकल पड़े। डा. मुखर्जी जनसंघ के अध्यक्ष थे। वे सत्याग्रह करते हुए बिना अनुमति जम्मू कश्मीर में गये, इस पर शेख अब्दुल्ला ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। 20 जून को उनकी तबियत खराब होने पर उन्हें कुछ ऐसी दवाएँ दी गयीं, जिससे उनका स्वास्थ्य और बिगड़ गया। 22 जून को उन्हें अस्पताल में भरती किया गया। उनके साथ जो लोग थे, उन्हें भी साथ नहीं जाने दिया गया। उसी रात में ही अस्पताल में ढाई बजे रहस्यमयी परिस्थिति में उनका देहान्त हुआ।

मृत्यु के बाद भी शासन ने उन्हें उचित सम्मान नहीं दिया। उनके शव को वायुसेना के विमान से दिल्ली ले जाने की योजना बनी; पर दिल्ली का वातावरण गरम देखकर शासन ने विमान को अम्बाला और जालन्धर होते हुए कोलकाता भेज दिया। कोलकाता में दमदम हवाई अड्डे से रात्रि 9.30 बजे चलकर पन्द्रह कि.मी दूर उनके घर तक पहुँचने में सुबह के पाँच बज गये। 24 जून को दिन में ग्यारह बजे शुरू हुई शवयात्रा तीन बजे शमशान पहुँची। हजारों  लोगों ने उनके अन्तिम दर्शन किये।

आश्चर्य की बात तो यह है कि डा. मुखर्जी तथा उनके साथी शिक्षित तथा अनुभवी लोग थे; पर पूछने पर भी उन्हें दवाओं के बारे में नहीं बताया गया। उनकी मृत्यु जिन सन्देहास्पद स्थितियों में हुई तथा बाद में उसकी जाँच न करते हुए मामले पर लीपापोती की गयी, उससे इस आशंका की पुष्टि होती है कि यह नेहरू और शेख अब्दुल्ला द्वारा करायी गयी चिकित्सकीय हत्या थी।
डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने अपने बलिदान से जम्मू-कश्मीर को बचा लिया। अन्यथा शेख अब्दुल्ला उसे पाकिस्तान में मिला देता।
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ऐसे महान बहुमुखी प्रतिभा के धनी मुखर्जी का 23 जून 1953 को संदेहास्पद हालत में निधन हो गया।

भारतीय जनता पार्टी, भारतीय जनसंघ की उत्तराधिकारी है, जिसका 1977 में जनता पार्टी में विलय हो गया था। 1979 में जनता पार्टी सरकार गिरने के पश्चात 1980 में  भारतीय जनता पार्टी का एक स्वतंत्र दल के रूप में उदय हुआ।

एक दक्ष राजनीतिज्ञ, विद्वान और स्पष्टवादी के रूप में वे अपने मित्रों और शत्रुओं द्वारा सामान रूप से सम्मानित थे। एक महान देशभक्त और संसद शिष्ट के रूप में भारत उन्हें सम्मान के साथ याद करता है।

राष्ट्रीय एकता व अखंडता के पर्याय, महान शिक्षाविद्, प्रखर राष्ट्रवादी और भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ० श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस पर भावभीनी श्रद्धांजलि व इन महान व्यक्तित्व को शत-शत नमन करूँ मैं ....... 💐💐💐💐
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#VijetaMalikBJP


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