लेफ्टिनेंट कर्नल धनसिंह थापा

लेफ्टिनेंट कर्नल धनसिंह थापा
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वीर गोरखा भारतीय सैनिक

भारत-चीन युद्ध के दौरान अदम्य साहस व पराक्रम दिखाने वाले परमवीर चक्र विजेता लेफ्टिनेंट कर्नल धनसिंह थापा जी की जयंती पर उन्हें शत्-शत् नमन।

मेजर धनसिंह थापा उन वीर गोरखा नायको में से है, जिन्होंने अपने जीवन के अनुशासन और शौय से भारतवर्ष को अतुलनीय योगदान दिया। 

युद्ध मैदान मे अदम्य साहस और वीरता के भारतीय सेना का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र के विजेता.
जन्म -10 अप्रैल सन 1928 ई. शिमला, हिमाचल प्रदेश।
देहावसान - 6 सितम्बर सन 2005 ई. 

मेजर धनसिंह थापा उन वीर गोरखा नायको में से है, जिन्होंने अपने जीवन को अनुशासन और शौय से भारतवर्ष को अतुलनीय योगदान दिया। 10 जून 1928 को शिमला में पी एस थापा के घर जन्मे धन सिंह ने अगस्त सन 1949 में भारतीय सेना के 8 गोरखा राईफल्स में कमीशन अधिकारी के रूप में अपनी सेवा प्रारम्भ की। धन सिंह थापा ने सन 1962 के भारत-चीन से युद्ध के दौरान कश्मीर सूबे के लद्दाख भूभाग में चीनी आक्रमणकारी सेना का सामना बहादुरी से किया।

लद्दाख के उत्तरी सीमा पर पांगोंग झील के पास सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण चुशूल हवाई पट्टे को चीनी सेना से बचाने के लिए सिरिजाप घाटी में 1/8 गोरखा राईफल्स की कमान सँभालते हुए चीनी कब्ज़े को पीछे खदेड़ने का काम शुरू किया। 12 अक्तूबर 1962 को सिरिजाप वन नामक सैन्य चौकी में प्लाटून सी में मेजर धन सिंह थापा ने दुश्मनों से ज़ोरदार युद्ध लड़ा। 20 अक्तूबर 1962 को अलसुबह 6 बजे को एक बार फिर पूरी ताक़त से चीनी सैनिको ने भारी हथियारों जैसे मोर्टार, तोप से सिरिजाप वन चौकी पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया। दोनों और से गोलाबारी ढाई घंटे से अधिक चलती रही, भारतीय सेना का संचार तंत्र इस हमले में बुरी तरह नष्ट हो गया, इस हमले में भारतीय सैन्य चौकी पूरी तरह से तबाह हो गई और अनेको जवान शहीद हो गए। मारे गए भारतीय सैनिको ने चीनी सेना को भी भारी नुकसान पहुँचाया था।

आखिरकार बड़े और कडे संघर्ष के बाद इस चौकी पर पूरी तरह से चीनी नियंत्रण हो गया, धन सिंह थापा को भी पकड़ने के लिए सैनिको को कड़ी मशक्कत करनी पडी, मेजर को अंत में चीनी सैनिको ने बंदी बना लिया। गोरखा परंपरा और भारतीय सैनिक के दायित्व का निर्वहन करते हुए धन सिंह थापा ने चीनी युद्धबंदी शिविर से चीनी सेना की चौकसी को धता हुए वहां से भागने में सफल हुए। कई दिनों पहाडियों में भटकते रहने के बाद थापा भारतीय सीमा क्षेत्र में प्रविष्ट हुए और भारतीय सैनिक चौकी तक पहुंचे, घायल अवस्था में होने के बावजूद बुलंद हौंसले ने अन्य भारतीय जवानो में भी नवउत्साह का संचार कर दिया। इस घटना ने ना केवल चीनी पक्ष का मनोबल गिराया वरन भारतीय सैनिको की निर्भीकता से दुनियाभर को सन्देश दिया। 

अपने दुश्मनों से वीरता से लड़ने के कारण भारतीय सरकार ने सेना का सर्वोच्च सम्मान "परमवीर चक्र " देकर धन सिंह थापा को सम्मानित किया। इस घटना के बाद भी धन सिंह थापा ने भारतीय सेना को अपनी सेवाए दी और सेना से लेफ्टिनेंट कर्नल के पद से रिटायर हुए। 6 सितम्बर 2005 को इस वीर गोरखा सपूत ने दुनिया को अलविदा कह दिया।

शत-शत नमन करूँ मैं आपको 💐💐💐💐
🙏🙏
#VijetaMalikBJP

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