सद्गुरु रामसिंह कूका

#सद्गुरु_रामसिंह_कूका_को_जानते_हो_?

महाराणा रणजीत सिंह की सेना में एक सिपाही थे "रामसिंह"। सेना में रहते हुए भी वो पूर्ण रूप से आध्यात्मिक थे और देश-काल, परिस्थितियों का सम्यक चिंतन कर सकते थे। इसी चिंतन में उनके "गुरु बाबा बालक सिंह जी" ने उन्हें हिन्दू धर्म के अंदर की कुरीतियों, अंधविश्वासों से लड़ने की प्रेरणा दी और कहा कि गौ माता को बचाओ क्योंकि अगर भारत भूमि पर गायें कटतीं रहीं तो फिर कुछ भी नहीं बचेगा।

"रामसिंह" ने गुरु से प्रेरणा पाकर वो सारे काम शुरू कर दिये जो उन्हें उनके गुरु ने बताया था; जैसे अस्पृश्यता निवारण के काम, विधवा विवाह, सामूहिक विवाह, यज्ञ, हवन और स्वदेशी का आवाहन, गो-रक्षा, मंदिरों और मठों में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरुद्ध शंखनाद आदि-आदि। इन सारे काम को उन्होंने एक आंदोलन का रूप दे दिया जिसे इतिहास में "कूका आन्दोलन" के नाम से जाना जाता है। रामसिंह "रामसिंह कूका" कहे जाने लगे और उनके अनुयायी "कूका"। पंजाब में उनका शिष्य बनने की होड़ लगने लगी। यही "कूके" कालांतर में "नामधारी सिख" कहे जाने लगे जो "श्री रामजन्म भूमि आंदोलन" और "गऊ रक्षा' में बड़ी सक्रिय रही है।

आपको शायद ज्ञात न हो कि रामसिंह ने कैसे-कैसे काम किये थे; जिसका श्रेय इतिहास में किसी को दे दिया जाता है।

भारतीय स्वाधीनता का पहला बिगुल और पहला ध्वज रामसिंह ने फहराया था। 12 अप्रैल 1857 को लुधियाना के श्री भैणी साहिब में। श्वेत रंग का "स्वतन्त्रता" ध्वज फहराकर उन्होंने सबसे पहले अंग्रेजी सत्ता को ललकारा था; जबकि हमें इतिहास में पढाया जाता है कि 1929 में लाहौर के रावी नदी के तट पर सबसे पहले नेहरु जी ने झंडा फहरा पर "पूर्ण स्वराज्य" की मांग की थी।

असहयोग आन्दोलन का जनक गाँधी जी को माना जाता है जबकि यह सच नहीं है, सच यह है कि इसके जनक रामसिंह थे; जिनका "कूका आन्दोलन" विदेशी शासन से असहयोग का जनक बना।

विधवा विवाह, सामूहिक विवाह ये सब काम रामसिंह जी ने सबसे पहले शुरू किये थे जब कोई इसकी कल्पना नहीं कर सकता था।

स्वदेशी जागरण के पहले प्रणेता भी रामसिंह कूका थे।

अगर देखा जाये तो महर्षि  दयानन्द सरस्वती ने जो काम "आर्य समाज" के माध्यम से किया था वही काम उनसे काफी पहले रामसिंह शुरू कर चुके थे। स्वाधीनता आंदोलन में कूदने के कारण बाबा रामसिंह जी अंग्रेजों के आँखों की किरकिरी बन गये।

रामसिंह जी की लोकप्रियता बढ़ती चली गई और पंजाब में जब उनके बढ़ गए तो रामसिंह जी ने ऐलान कर दिया कि अब पंजाब की भूमि पर कोई गोहत्या बर्दाश्त नहीं की जाएगी। बाबा के अनुयायियों ने पंजाब के कसाइयों को मारना शुरू कर दिया और बूचड़खाने बंद करा दिये। इस कारण से 47 कूका वीरों को गिरफ्तार कर लिया गया और बिना मुकदमा चलाये उन्हें तोप के आगे बांध कर उड़ा दिया गया। इन 47 गोभक्त कूकों में 12 साल का एक बालक भी था।

पंजाब में इनका प्रताप इतना था कि कोई गाय को गलत उद्देश्य से छूने से भी डरने लगा और पाँच नदियों का प्रदेश गोवंशों के लिए "वृंदावन" हो गई जहां वो स्वछंद विचरतीं थीं।

गायों के लिए अभय बने ऐसे न जाने कितने वीर कूके बलिदान हुये और एक दिन बाबा रामसिंह को गिरफ्तार कर रंगून जेल दिया गया जहाँ उन्होंने अपना शरीर ईश्वर को सौंप दिया। 
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रामसिंह जी के बारे में ये बताना आवश्यक है कि क्योंकि वो सिख थे......सिखों में भी वो जिन्हें पवित्र गुरुग्रँथ साहिब के प्रथम मुद्रणकर्ता होने का सौभाग्य प्राप्त था।

उनके बारे में बताना इसलिये भी आवश्यक है क्योंकि उनके कूके जब तोप के मुँह पर बांधे जाते थे तो वो "सतश्री अकाल" का जयघोष करते थे।

"रामसिंह कूका" केवल नामधारियों के सद्गुरु नहीं है बल्कि हमारे भी हैं और किसी भी रूप में उनका दर्जा हमारे लिए महर्षि दयानंद और विवेकानंद से कम नहीं है और गोरक्षा के लिए उनका समर्पण तो उन्हें राजा दिलीप की श्रेणी में खड़ा कर देता है।

उनके बारे में, उनके गोभक्त और राष्ट्रभक्त बलिदानी कूकों के बारे में स्वयं भी जानिये और बाकियों को भी बताइये, उनके विस्मरण के पाप का यही परिमार्जन होगा।

शत-शत नमन करूँ मैं आपको 💐💐💐
🙏🙏
#VijetaMalikBJP

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