भगवान नरसिंह व भक्त प्रह्लाद

🚩★आइये जानते हैं अपने हिन्दुस्तान को★🚩
🙏101🙏

होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं आप व आपके परिवार को 🔅🚩

भक्त प्रह्लाद की जय🚩
भगवान नरसिंह की जय🚩

आइये एक छोटा सा काम जरूर करें.....

आज सोने से पहले,
अपने बच्चों को भक्त प्रह्लाद के बारे में जरूर बताएं
और भगवान नरसिंह अवतार का चित्र जरूर दिखाएं

"भक्ति" और "निर्भय" होना इसका अर्थ बताएं....
और उनके द्वारा खूब खेली गई होली को एक अर्थ दें ....

#HappyHoli 

विष्णुपुराण की एक कथा के अनुसार जिस समय असुर संस्कृति शक्तिशाली हो रही थी, उस समय असुर कुल में एक अद्भुत, प्रह्लाद नामक बालक का जन्म हुआ था। उसका पिता, असुर राज हिरण्यकश्यप तथा मां कयाधु थी। देवताओं से वरदान प्राप्त कर के हिरण्यकश्यप निरंकुश हो गया था। उसका आदेश था, कि उसके राज्य में कोई भी भगवान विष्णु की पूजा नही करेगा। परंतु उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्त था और ईश्वर में उसकी अटूट आस्था थी। इस पर क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने उसे मृत्यु दंड दिया। हिरण्यकश्यप की बहन, होलिका, जिस को आग से जलकर ना मरने का वरदान था, प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठ गई, परंतु ईश्वर की कृपा से प्रह्लाद को तो कुछ ना हुआ और वह स्वयं ही भस्म हो गई। ये था होलिका दहन.... और अगले दिन भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप को मार दिया और सृष्टि को उसके अत्याचारों से मुक्ति प्रदान की। इस ही अवसर को याद कर रंगों की होली मनाई जाती है। इस प्रकार प्रह्लाद की कहानी होली के पर्व से जुड़ी हुई है। हमें भी प्रह्लाद की तरह बनना चाहिए।

आइये अब इस कथा के बारे में विस्तार से जानते हैं......

हिरण्यकश्यप''  एक असुर था जिसकी कथा पुराणों में आती है। उसका वध नृसिंह अवतारी विष्णु द्वारा किया गया। यह हिरण्यकरण वन नामक स्थान का राजा था जोकि वर्तमान में बिहार में जाता है। हिरण्याक्ष उसका छोटा भाई था जिसका वध वाराह ने किया था।

परिचय
~~~~
विष्णुपुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार दैत्यों के आदिपुरुष कश्यप और उनकी पत्नी दिति के दो पुत्र हुए। हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष। हिरण्यकशिपु ने कठिन तपस्या द्वारा ब्रह्मा को प्रसन्न करके यह वरदान प्राप्त कर लिया कि ना वह किसी मनुष्य द्वारा मारा जा सकेगा, ना पशु द्वारा, ना दिन में मारा जा सकेगा, ना रात में, ना घर के अंदर ना बाहर, ना किसी अस्त्र के प्रहार से और ना किसी शस्त्र के प्रहार से उसके प्राणों को कोई डर रहेगा। इस वरदान ने उसे अत्यंत अहंकारी बना दिया और वह अपने को अमर समझने लगा। उसने इंद्र देव का राज्य छीन लिया और तीनों लोकों को प्रताड़ित करने लगा। वह चाहता था कि सब लोग उसे ही भगवान मानें और उसकी पूजा करें। उसने अपने राज्य में विष्णु की पूजा को वर्जित कर दिया।

हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद, भगवान विष्णु का उपासक था और यातना एवं प्रताड़ना के बावजूद वह भगवान विष्णु की पूजा करता रहा। क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह अपनी गोद में प्रह्लाद को लेकर प्रज्ज्वलित अग्नि में चली जाय क्योंकि होलिका को यह वरदान था कि वह अग्नि में कभी नहीं जलेगी। जब होलिका ने प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया तो प्रह्लाद का तो बाल भी बाँका ना हुआ पर होलिका जलकर राख हो गई। 

अंतिम प्रयास में हिरण्यकशिपु ने लोहे के एक खंभे को गर्म कर लाल कर दिया तथा प्रह्लाद को बोला कि यदि इस गर्म खम्बे में भी तेरे भगवान हैं तो उसे गले लगाने को कहा। एक बार फिर भगवान विष्णु प्रह्लाद को उबारने को आए। वे खंभे से नरसिंह के रूप में अवतरित हो प्रकट हुए तथा हिरण्यकशिपु को महल के प्रवेश द्वार की चौखट पर, जो ना घर का बाहर था ना घर का भीतर, गोधूलि बेला में, जब ना दिन था ना रात, आधा मनुष्य, आधा पशु जो ना नर था ना पशु। ऐसे नरसिंह के रूप में अपने लंबे तेज़ नाखूनों से जो ना अस्त्र थे ना शस्त्र, हिरणकश्यप को मार डाला। इस प्रकार हिरण्यकश्यप अनेक वरदानों के बावजूद अपने दुष्कर्मों के कारण भयानक अंत को प्राप्त हुआ।

नाम पर मतभेद
~~~~~~~~
हिरण्यकश्यप के नाम के विषय में मतभेद है। कुछ स्थानों पर उसे हिरण्यकश्यप कहा गया है और कुछ स्थानों पर हिरण्यकिशुप, शुद्ध हिरण्यकिशुप है जिसका अर्थ होता है अग्नि (हिरण्य) के रंग के केश वाला। ऐसा माना जाता है कि संभवतः जन्म के समय उसका नाम हिरण्यकिशुप रखा गया किंतु सबको प्रताड़ित करने के कारण (संस्कृत में कषि का अर्थ है हानिकारक, अनिष्टकर, पीड़ाकारक) उसको बाद में हिरण्यकश्यप से जाना गया। नाम पर जो भी मतभेद हों, उसकी मौत बिहार के पूर्णिया जिले के बनमनखी प्रखंड के जानकीनगर के पास धरहरा में हुआ था। इसका प्रमाण अभी भी यहाँ है और प्रतिवर्ष लाखो लोग यहाँ होलिका दहन में भाग लेते हैं।

🚩जय श्री राम🚩
🙏
#VijetaMalikBJP

Popular posts from this blog

वक्त आने पर बता देंगे तुझे ऐं आसमां

वीरांगना झलकारी बाई

मेजर शैतान सिंह भाटी जी