रानी कर्णावती

देवभूमि की वो महारानी, जिसने शाहजहां को हराया, 30 हजार मुगलों की नाक काटी ......

बहुत कम उत्तराखंडी शायद इस बात के बारे में जानते होंगे। अतीत के पन्नों से आपके लिए उत्तराखंड के शौर्य की एक दास्तान लेकर आई हूँ। मुझे यकीन है आपको ये कहानी पढ़कर गर्व होगा और आप अन्य लोगों तक उत्तराखंड की इस शौर्यगाथा को शेयर करेंगे।

ये कहानी है गढ़वाल की रानी कर्णावती की। इस रानी ने मुगलों की बाकायदा नाक कटवायी थी और इसलिए कुछ इतिहासकारों ने उनका जिक्र नाक क​टी रानी या नाक काटने वाली रानी के रूप में किया है। रानी कर्णावती ने गढ़वाल में अपने नाबालिग बेटे पृथ्वीपतिशाह के बदले तब शासन का कार्य संभाला था, जबकि दिल्ली में मुगल सम्राट शाहजहां का राज था। शाहजहां के कार्यकाल के दौरान बादशाहनामा लिखने वाले अब्दुल हमीद लाहौरी ने भी गढ़वाल की इस रानी का जिक्र किया है यहां तक कि नवाब शम्सुद्दौला खान ने 'मासिर अल उमरा' में उनका जिक्र किया है।

इटली के लेखक निकोलाओ मानुची जब सत्रहवीं सदी में भारत आये थे तब उन्होंने शाहजहां के पुत्र औरंगजेब के समय मुगल दरबार में काम किया था। उन्होंने अपनी किताब 'स्टोरिया डो मोगोर' यानि 'मुगल इंडिया' में गढ़वाल की एक रानी के बारे में बताया है जिसने मुगल सैनिकों की नाट काटी थी। माना जाता है कि स्टोरिया डो मोगोर 1653 से 1708 के बीच लिखी गयी थी जबकि मुगलों ने 1640 के आसपास गढ़वाल पर हमला किया था।

रानी कर्णावती पवांर वंश के राजा महिपतशाह की पत्नी थी। महिपतशाह जब स्वर्ग सिधार गये, तो राजगद्दी पर उनके सात साल के पुत्र पृथ्वीपतिशाह ही बैठे लेकिन राजकाज उनकी मां रानी कर्णावती ने चलाया। गढ़वाल की राजधानी श्रीनगर को बनाया गया और वहां से रानी कर्णावती ने अपना राज-पाठ संभाला।

इस बीच शाहजहां ने गढ़वाल पर आक्रमण करने का फैसला किया। इटली के लेखक और यात्री निकालो मुनिची ने अपनी किताब में लिखा है कि 30 हजार सैनिकों के साथ मुग़ल सेनापति नजाबत खान ने गढ़वाल पर चडाई कर दी। पहाड़ी क्षेत्र से अपरिचित मुग़ल सैनिकों का फायदा उठाते हुए रानी कर्णावती ने उन्हें घाटी में घेर लिया। अब मुग़ल सैनिक न पीछे मुड पाए न आगे जा पाए। धीरे धीरे मुग़ल सैनिकों के होसले परास्त होने लगे और सेनापति नजाबत खान ने रानी के पास संधि सन्देश भेजा किन्तु रानी कर्णावती ने उसे ठुकरा दिया। यद्यपि रानी कर्णावती ने मुग़ल सैनिकों को जीवन दान देने के लिए हामी भर दी किन्तु सारे मुग़ल सैनिकों को अपनी नाक कटवानी पड़ी, जिससे मुग़ल दरबार में यह सन्देश पहुंचा कि अगर वे नाक कटवा सकतीं हैं तो गर्दन भी कटवा सकतीं हैं। इसके बाद से रानी कर्णावती का उपनाम नाक-कटी-रानी पड गया।

समसाम उद दौला शाह नवाज खान की लिखी पुस्तक मसिर-उल-उमारा में लिखा है कि गढ़वाल रियासत के सेनापति दोस्त बेग का इस लड़ाई में और रानी कर्णावती की सफलता में बहुत बड़ा हाथ था और वह रानी के ख़ास लोगों में से एक थे। दोस्त बेग गढ़वाल नरेश महीपति शाह के भी सेनापति थे। रानी कर्णावती ने काफी नहरों और गूल भी बनवाये थे जिससे दून घाटी में कृषि में बड़ा सुधार देखने को मिला। रानि कर्णावती के राज में बहुत से शहर फले फुले। राजपुर कैनाल का निर्माण भी रानी कर्णावती ने ही करवाया था। रानी कर्णावती के बाद पृथ्वीपति शाह ने अपनी माँ के पदचिन्हों पर चल कर ही राज करा।

कहा जाता है कि शाहजहां इस हार से काफी शर्मसार हुआ था। ये है गढ़वाल की रानी कर्णावती की कहानी।

शत-शत नमन करूँ मैं रानी कर्णावती जी को .....

#VijetaMalikBJP

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