Posts

Showing posts from September, 2025

परोपकारी रानी रश्मोनी

Image
परोपकारी रानी रश्मोनी ~~~~~~~~~~~~~ रानी रश्मोनी  जी ( 28 सितंबर, 1793 - 19 फ़रवरी, 1861) बंगाल में, नवजागरण काल की एक महान नारी थीं। वे एक सामाजिक कार्यकर्ता, एवं कोलकाता के जानबाजार की जनहितैषी ज़मीनदार के रूप में प्रसिद्ध थीं। वे दक्षिणेश्वर काली मंदिर की संस्थापिका थीं, एवं नवजागरण काल के प्रसिद्ध दार्शनिक एवं धर्मगुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस की मुख्य पृष्ठपोषिका भी हुआ करती थी। प्रचलित लोककथा के अनुसार, उन्हें एक स्वप्न में हिन्दू देवी काली ने भवतारिणी रूप में दर्शन दिया था, जिसके बाद, उन्होंने उत्तर कोलकाता में, हुगली नदी के किनारे देवी भवतारिणी के भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था। रानी रश्मोनी जी को " रानीमाँ " कह कर संबोधित किया गया है, और नीचे उन्हें "लोकमाता रानी रासमणि" कहा गया है। रानी रश्मोनी ने अपने विभिन्न जनहितैषी कार्यों के माध्यम से प्रसिद्धि अर्जित की थी। उन्होंने तीर्थयात्रियों की सुविधा हेतु, कलकत्ता से पूर्व पश्चिम की ओर स्थित, सुवर्णरेखा नदी...

भारत रत्न भूपेन हजारिका जी

Image
भूपेन हाजरिका ~~~~~~~~ भूपेन हाजरिका (असमिया: ভূপেন হাজৰিকা / उच्चारण : भूपेन हाजोरिका) (8 सितंबर, 1926- 5 नवम्बर 2011) भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम से एक बहुमुखी प्रतिभा के गीतकार, संगीतकार और गायक थे। इसके अलावा वे असमिया भाषा के कवि, फिल्म निर्माता, लेखक और असम की संस्कृति और संगीत के अच्छे जानकार भी रहे थे। भूपेन हाजरिका ~~~~~~~~ असम का स्वर्ण स्वरजन्मसदिया, असम, भारतपुरस्कारपद्म विभूषण, पद्म श्री, दादा साहेब फाल्के पुरस्कार, पद्म भूषण, संगीत नाटक अकादमी, असम रत्न, मुक्तिजोधा पदक, भारत रत्न वे भारत के ऐसे विलक्षण कलाकार थे जो अपने गीत खुद लिखते थे, संगीतबद्ध करते थे और गाते थे। उन्हें दक्षिण एशिया के श्रेष्ठतम जीवित सांस्कृतिक दूतों में से एक माना जाता है। उन्होंने कविता लेखन, पत्रकारिता, गायन, फिल्म निर्माण आदि अनेक क्षेत्रों में काम किया। भूपेन हजारिका के गीतों ने लाखों दिलों को छुआ। हजारिका की असरदार आवाज में जिस किसी ने उनके गीत "दिल हूम हूम करे" और "ओ गंगा तू बहती है क्यों" सुना वह इससे इंकार नहीं कर सकता कि उसके दिल पर भूपेन दा का जादू नहीं चला...

शहीद भगत सिंह जी

Image
शहीद भगत सिंह भारतीय क्रांतिकारी ~~~~~~~~~~~ 🌺🌹🥀🙏🌻🌷💐 तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए लिखी ये कहानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी.. 🌺🌹🥀🙏🌻🌷💐 भगत सिंह (जन्म: 28 सितम्बर १९०७, मृत्यु: २३ मार्च १९३१) भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी थे। चन्द्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने देश की आज़ादी के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया। पहले लाहौर में साण्डर्स की हत्या और उसके बाद दिल्ली की केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम-विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की। इन्होंने असेम्बली में बम फेंककर भी भागने से मना कर दिया। जिसके फलस्वरूप इन्हें २३ मार्च १९३१ को इनके दो अन्य साथियों, राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया गया। सारे देश ने उनके इस बलिदान को अश्रुपूरित नम आंखों से बड़ी ही गम्भीरता से याद रखा। भगत सिंह  जन्म स्थल : गाँव बंगा, जिला यलपुर, पंजाब (अब पाकिस्तान में)  जटृ (जाट सिक्ख)  मृत्यु स्थल : लाहौर जेल, पंजाब (अब पाकिस्तान...

शहीद कनकलता बरुआ जी

Image
शहीद कनकलता बरुआ जी ~~~~~~~~~~~~~~ 20 सितंबर/बलिदान दिवस कनकलता जी का जन्म 22 दिसंबर 1924 को हुआ था।  कनकलता बरुआ जी का जन्म असम के अविभाजित दारंग जिले के बोरंगाबाड़ी गांव में कृष्णकांत और कर्णेश्वरी बरुआ की बेटी के रूप में हुआ था। उनके दादा घाना कांता बरुआ दारंग में एक प्रसिद्ध शिकारी थे। उनके पूर्वज तत्कालीन अहोम राज्य के डोलकाशरिया बरुआ साम्राज्य (चुटिया जागीरदार सरदार) से थे, जिन्होंने डोलकाशरिया उपाधि को त्याग दिया और बरुआ उपाधि को बरकरार रखा। जब वह केवल पाँच वर्ष की थी तब उसकी माँ की मृत्यु हो गई और जब वह तेरह वर्ष की हुई तो उनके पिता की भी मृत्यु हो गई, वह कक्षा तीन तक स्कूल गई लेकिन फिर अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल के लिए उन्होंने स्कूल छोड़ दिया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कनकलता बरुआ जी मृत्यु वाहिनी में शामिल हो गई, जो एक मौत का दस्ता था जिसमें असम के गोहपुर उप-मंडल के युवाओं के समूह शामिल थे। 20 सितंबर 1942 को वाहिनी ने निर्णय लिया कि वह स्थानीय पुलिस स्टेशन पर राष्ट्रीय ध्वज फहराएंगी। कनकलता बरुआ जी ने ऐसा करने के लिए निहत्थे ग्रामीणों के एक जुलूस का न...

क्रांतिकारी कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’

Image
क्रांतिकारी कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ हिन्दी के प्रसिद्ध कवियों में से एक राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को  सिमरिया नामक स्थान पे हुआ। इनकी मृत्यु 24 अप्रैल, 1974 को चेन्नई) में हुई । जीवन परिचय :  हिन्दी के सुविख्यात कवि रामाधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 ई. में सिमरिया, ज़िला मुंगेर (बिहार) में एक सामान्य किसान रवि सिंह तथा उनकी पत्नी मन रूप देवी के पुत्र के रूप में हुआ था। रामधारी सिंह दिनकर एक ओजस्वी राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत कवि के रूप में जाने जाते थे। उनकी कविताओं में छायावादी युग का प्रभाव होने के कारण श्रृंगार के भी प्रमाण मिलते हैं। दिनकर के पिता एक साधारण किसान थे और दिनकर दो वर्ष के थे, जब उनका देहावसान हो गया। परिणामत: दिनकर और उनके भाई-बहनों का पालान-पोषण उनकी विधवा माता ने किया। दिनकर का बचपन और कैशोर्य देहात में बीता, जहाँ दूर तक फैले खेतों की हरियाली, बांसों के झुरमुट, आमों के बगीचे और कांस के विस्तार थे। प्रकृति की इस सुषमा का प्रभाव दिनकर के मन में बस गया, पर शायद इसीलिए वास्तविक जीवन की कठोरताओं क...

राव तुलाराम जी

Image
राव तुलाराम जी ~~~~~~~~ भारत की आजादी के लिए दर-दर भटकता एक महानायक ..... 9 दिसम्बर 1825 को जन्में राव तुलाराम जी का 23 सितंबर को हरियाणा राज्य वीर शहीद दिवस मनाता है क्योंकि 1863 मे इसी दिन राव तुला राम की मृत्यु हुई थी। हवाई मार्ग से दिल्ली आने और जाने वाले जिस सड़क का इस्तेमाल करते हैं उसका नाम है राव तुला राम मार्ग. शांति पथ से आगे बढ़ते हुए जैसे ही आप आरकेपुरम के ट्रैफिक-सिग्नल को पार करते हैं, राव तुला राम मार्ग शुरू हो जाता है, जो इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास से होते हुए गुरुग्राम (गुडगांव) की ओर बढ़ जाता है और दिल्ली-अजमेर एक्सप्रेसवे से जुड़ जाता है। इसका मतलब ये हुआ कि दुनियाभर से दिल्ली आने वाले और दिल्ली से दुनिया भर में जाने वाले बिना राव तुला राम मार्ग पर आए अपनी यात्रा पूरी नहीं कर सकते। लेकिन भागती-दौड़ती जिंदगी में शायद ही कभी आप यह जानने की कोशिश करते होंगे कि आखिर राव तुला राम थे कौन? हरियाणा का वीर शहीद ~~~~~~~~~~~~ हो सकता है कि आज इस नाम की अहमियत लोगों के लिए सिर्फ एक साइन-बोर्ड से ज्यादा न हो लेकिन रेवाड़ी, हरियाणा का यह सपूत 185...

आदर्श कार्यकर्ता रामेश्वर दयाल जी

Image
आदर्श कार्यकर्ता रामेश्वर दयाल जी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 2 सितम्बर/जन्म-दिवस श्री रामेश्वर दयाल शर्मा का जन्म दो सितम्बर, 1927 को अपनी ननिहाल फिरोजाबाद (उ.प्र.) में हुआ था। इनके पिता पंडित नत्थीलाल शर्मा तथा माता श्रीमती चमेली देवी थीं। 1935 में इनके पिताजी का देहांत हो गया, अतः माताजी चारों बच्चों को लेकर अपने मायके फिरोजाबाद आ गयीं। इस कारण सब बच्चों की प्रारम्भिक शिक्षा फिरोजाबाद में ही हुई। 1942-43 में रामेश्वर जी स्वाधीनता सेनानी श्री रामचन्द्र पालीवाल तथा श्री रामगोपाल पालीवाल से प्रभावित होकर फिरोजाबाद के भारतीय भवन पुस्तकालय का संचालन करने लगे। इसी समय आगरा जिले में प्रचारक श्री भाऊ जी जुगाधे के छोटे भाई भैया जी जुगाधे के साथ वे शाखा में जाने लगे। फिरोजाबाद संघ कार्यालय पर श्री बाबासाहब आप्टे के दर्शन एवं वार्तालाप से उनके मन पर संघ के विचारों की अमिट छाप पड़ गयी। 1945 में वे फिरोजाबाद से आगरा आ गये और यमुना प्रभात शाखा में  सक्रिय हो गये। इसी समय वे छत्ता वार्ड की कांग्रेस कमेटी के महामंत्री भी थे। 1948 में गांधी जी की हत्या के बाद संघ पर प्रतिबन्ध लग गया। ...

सबके हितचिंतक केशवराव गोरे जी

Image
सबके हितचिंतक केशवराव गोरे ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 1 सितम्बर/जन्म-दिवस माता-पिता प्रायः अपने बच्चों के काम, मकान, दुकान, विवाह आदि की चिन्ता करते ही हैं; पर 1 सितम्बर, 1915 को गोंदिया (महाराष्ट्र) में जन्मे केशव नरहरि गोरे ने प्रचारक बनने से पूर्व पिताजी के लिए मकान बनवाकर एक बहिन का विवाह भी किया। ये लोग मूलतः वाई (महाराष्ट्र) के निवासी थे। केशवराव के पिता श्री नरहरि वामन गोरे तथा माता श्रीमती यशोदा गोरे थीं। रेलवे में तारबाबू होने के कारण श्री नरहरि का स्थानान्तरण होता रहता था। अतः केशवराव की प्रारम्भिक शिक्षा गोंदिया तथा उच्च शिक्षा मिदनापुर (बंगाल) में हुई। मेधावी छात्र होने के कारण उन्होंने मराठी के साथ ही हिन्दी, अंग्रेजी, बंगला, उड़िया और संस्कृत बोलना सीख लिया था। वे नाटकों में अभिनय भी करते थे। बचपन में वे बहुत क्रोधी थे। एक बार माताजी ने इन्हें किसी बात पर बहुत पीटा और कमरे में बंद कर दिया। उनके लौटने तक केशव ने आल्मारी में रखे सब कीमती वस्त्र फाड़ डाले। एक बार बड़े भाई इनके कपड़े पहन कर विद्यालय चले गये; पर केशव ने बीच रास्ते से उन्हें लौटाकर कपड़े उतरवा लिये। व...

अध्यात्म पुरुष बाबा बुड्ढा

Image
अध्यात्म पुरुष बाबा बुड्ढा ~~~~~~~~~~~~~~~ 1 सितम्बर/इतिहास-स्मृति सिख इतिहास में बाबा बुड्ढा का विशेष महत्त्व है। वे पंथ के पहले गुरु नानकदेव जी से लेकर छठे गुरु हरगोविन्द जी तक के उत्थान के साक्षी बने। बाबा बुड्ढा का जन्म अमृतसर के पास गांव कथू नंगल में अक्तूबर, 1506 ई. में हुआ था। बाद में उनका परिवार गांव रमदास में आकर बस गया।  जब उनकी अवस्था 12-13 वर्ष की थी, तब गुरु नानकदेव जी धर्म प्रचार करते हुए उनके गांव में आये। उनके तेजस्वी मुखमंडल से बालक बाबा बुड्ढा बहुत प्रभावित हुए। वे प्रायः घर से कुछ खाद्य सामग्री लेकर जाते और उन्हें भोजन कराते। एक बार उन्होंने पूछा कि जैसे भोजन करने से शरीर तृप्त होता है, ऐसे ही मन की तृप्ति का उपाय क्या है ? मृत्यु से मुक्ति और शरीर का आवागमन बार-बार न हो, इसकी विधि क्या है ? गुरु नानकदेव ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा और कहा कि तुम्हारी उम्र तो अभी खाने-खेलने की है; पर तुम बातें बुड्ढों जैसी कर रहे हो। इसके बाद गुरु जी ने उनकी शंका का समाधान करने के लिए कुछ उपदेश दिया। तब से उस बालक ने नानकदेव जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया। उन्होंन...