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Showing posts from April, 2018

बुद्ध पूर्णिमा

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बुद्ध पूर्णिमा ~~~~~~ विष्णु जी के 9वें अवतार हैं भगवान बुद्ध । बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। बुद्ध जी ने आज ही के दिन बोधगया में पीपल के पेड़ के नीचे बुद्धत्व हासिल किया था। इसके अलावा बुद्ध जी आज ही यूपी के गोरखपुर से कुशीनगर में महानिर्वाण के लिए प्रस्थान किए थे। बुद्ध पूर्णिमा पर गंगा स्नान का है विशेष महत्व। भगवान बुद्ध को इसी दिन हुई बुद्धत्व की प्राप्ति, उनके उपदेश आज भी हैं प्रासंगिक। वैशाख महीने की पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इसे बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस साल बुद्ध पूर्णिमा 30 अप्रैल यानी सोमवार को है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। बुद्ध जी ने आज ही के दिन बोधगया में पीपल के पेड़ के नीचे बुद्धत्व हासिल किया था। इसके अलावा बुद्ध जी आज ही यूपी के गोरखपुर से कुशीनगर में महानिर्वाण के लिए प्रस्थान किए थे। इसलिए बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों के लिए बुद्ध पूर्णिमा बहुत ही खास है। बौद्ध धर्म के अनुयायी दुनियाभर के कई देशों में फैले हुए हैं। इनमें श्रीलंका, चीन, कंबोडिया, वियतनाम, थाईलैंड, नेपाल, मलयेशिया, म्यांमार औ

महाकवि सूरदास

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सूरदास | Surdas सूरदास जी वात्सल्य रस के सम्राट माने जाते हैं। उन्होंने श्रृंगार और शान्त रसों का भी बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है। सूरदास की जन्मतिथि एवं जन्मस्थान के विषय में विद्वानों में मतभेद है। "साहित्य लहरी' सूर की लिखी रचना मानी जाती है। इसमें साहित्य लहरी के रचना-काल के सम्बन्ध में निम्न पद मिलता है - मुनि पुनि के रस लेख । दसन गौरीनन्द को लिखि सुवल संवत् पेख ।। इसका अर्थ संवत् १६०७ वि० माना जाता है, अतएवं "साहित्य लहरी' का रचना काल संवत् १६०७ वि० है। इस ग्रन्थ से यह भी प्रमाणित होता है कि सूर के गुरु श्री बल्लभाचार्य थे। इस आधार पर सूरदास का जन्म सं० १५३५ वि० के लगभग ठहरता है, क्योंकि बल्लभ सम्प्रदाय की मान्यता है कि बल्लभाचार्य सूरदास से दस दिन बड़े थे और बल्लभाचार्य का जन्म उक्त संवत् की वैशाख् कृष्ण एकादशी को हुआ था। इसलिए सूरदास की जन्म-तिथि वैशाख शुक्ला पंचमी, संवत् १५३५ वि० समीचीन मानी जाती है। उनकी मृत्यु संवत् १६२० से १६४८ वि० के मध्य मान्य है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी के मतानुसार सूरदास का जन्म संवत् १५४० वि० के सन्निकट और मृत्यु संवत् १६२०

भगवान परशुराम

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भगवान परशुराम ~~~~~~~~~ अन्य नामजमदग्नि के पुत्र होने के कारण ये 'जामदग्न्य' भी कहे जाते हैं। अवतार विष्णु के दस अवतारों में से छठे अवतारवंश-गोत्र : भृगुवंश पिता : जमदग्नि माता : रेणुका जन्म विवरण : इनका जन्म वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था। अत: इस दिन व्रत करने और उत्सव मनाने की प्रथा है। धर्म-संप्रदाय : हिंदू धर्म परिजन : रुमण्वान, सुषेण, वसु, विश्वावसु (सभी भाई) विद्या पारंगत : धनुष-बाण, परशु अन्य विवरण : परशुराम शिव के परम भक्त थे।संबंधित लेख : जमदग्नि, रेणुका, परशु, अक्षय तृतीया। अन्य जानकारी : इनका नाम तो राम था, किन्तु शिव द्वारा प्रदत्त अमोघ परशु को सदैव धारण किये रहने के कारण ये 'परशुराम' कहलाते थे। परशुराम राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका और भृगुवंशीय जमदग्नि के पुत्र थे। वे विष्णु के अवतार और शिव के परम भक्त थे। इन्हें शिव से विशेष परशु प्राप्त हुआ था। इनका नाम तो राम था, किन्तु शंकर द्वारा प्रदत्त अमोघ परशु को सदैव धारण किये रहने के कारण ये परशुराम कहलाते थे। परशुराम भगवान विष्णु के दस अवतारों में से छठे अवतार थे, जो वामन एवं रामचन्द्र के मध्य में गि

तात्या टोपे

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तात्या टोपे ~~~~~~ पूरा नाम  – रामचंद्रराव पांडुरंगराव येवलकर जन्म     – सन 1814 जन्मस्थान – यवला (महाराष्ट्र) पिता     – पांडुरंग माता     – रुकमाबाई तात्या टोपे का जन्म सन 1814 ई. में नासिक के निकट पटौदा ज़िले में येवला नामक ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम पाण्डुरंग त्र्यम्बक भट्ट तथा माता का नाम रुक्मिणी बाई था। तात्या टोपे देशस्थ कुलकर्णी परिवार में जन्मे थे। इनके पिता पेशवा बाजीराव द्वितीय के गृह-विभाग का काम देखते थे। उनके विषय में थोड़े बहुत तथ्य उस बयान से इकट्ठे किए जा सकते हैं, जो उन्होंने अपनी गिरफ़्तारी के बाद दिया और कुछ तथ्य तात्या के सौतेले भाई रामकृष्ण टोपे के उस बयान से इकट्ठे किए जा सकते हैं, जो उन्होंने 1862 ई. में बड़ौदा के सहायक रेजीडेंस के समक्ष दिया था। तात्या का वास्तविक नाम 'रामचंद्र पांडुरंग येवलकर' था। 'तात्या' मात्र उपनाम था। तात्या शब्द का प्रयोग अधिक प्यार के लिए होता था। टोपे भी उनका उपनाम ही था, जो उनके साथ ही चिपका रहा। क्योंकि उनका परिवार मूलतः नासिक के निकट पटौदा ज़िले में छोटे से गांव येवला में रहता था, इसलिए उनका उपनाम येवल